Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 5
________________ लेकिन कमठ अपनी आदतों से बाज नहीं आया। एक दिन उसने घर पर ही छककर शराब पी ली। शराब के नशे में पागल हुआ वह अपने छोटे भाई की पत्नी वसुंधरा के कक्ष में चला गया-"वसुंधरे ! देख मैं तेरे लिये क्या लाया हूँ?" उसने एक सोने का हार उसके गले में डालकर उसका हाथ पकड़ लिया। वसुंधरा घबराई-"जेठ जी ! आप यह क्या पाप कर रहे हैं ? मैं आपके छोटे भाई की पत्नी हूँ। आपकी पुत्री के समान।" नशे में चूर कमठ ने कहा-'"सुन्दरी ! तेरा पति तो नपुंसक है। इसलिए वह मन्दिर में पड़ा रहता है। अब तू मेरे साथ जीवन का आनन्द लूट ले।" और उसने एक सोने का कंगन उसके हाथों में पहना दिया। __ वसुंधरा प्रलोभनों में फंस गई। अब कमठ बिना किसी डर, भय के पाप-लीला रचाने लगा। कमठ की पत्नी ने यह सब देखा तो उसने वसुंधरा को फटकारा-'नीच ! पापिनी ! पिता तुल्य जेठ के साथ यह पापाचार करती है ? तेरे शरीर में कीड़े पड़ जायेंगे।" क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ Jain For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 70