Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 50
________________ पार्श्वकुमार-"राजन् ! अभी तो मैं पिताश्री की आज्ञा से आपकी सहायता के लिए। आया हूँ। विवाह की बात यहाँ नहीं हो सकती।" प्रसेनजित-"स्वामी ! आपका कथन उचित ही है। मैं आपके साथ वाराणसी जाकर महाराज अश्वसेन से प्रार्थना करूँगा।" पार्श्वकुमार के साथ राजा प्रसेनजित भी वाराणसी आया। प्रसेनजित ने राजा अश्वसेन से प्रार्थना की-“हे स्वामी ! मेरी पुत्री प्रभावती का मनोरथ आप ही पूर्ण कर सकते हैं।" ___राजा अश्वसेन ने पार्श्वकुमार की तरफ देखा-"वत्स ! राजा प्रसेनजित की प्रार्थना स्वीकार करो।" ___ पार्श्वकुमार-"पिताश्री ! मुझे जिस परिग्रह का त्याग ही करना है उसे स्वीकार करने से क्या लाभ है ?" माता-पिता-"पुत्र! तुम निस्पृह और वीतराग हो, हम जानते हैं। परन्तु माता-पिता का मनोरथ पूर्ण करना भी पुत्र का कर्तव्य है।" माता वामादेवी ने कहा-"वत्स! एक बार तुम्हें विवाहित देखकर मेरी मनोभावना पूरी हो जायेगी।" __सबका आग्रह मान्य कर पार्श्वकुमार ने प्रभावती के साथ पाणिग्रहण किया। दोनों की सुन्दर जोड़ी देखकर माता-पिता तथा परिजन हर्ष से नाच उठे। J48Education International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पायजावPage Navigation
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