Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 48
________________ Molestatram thE-F0.4 पार्श्वकुमार मुस्कराकर कहते हैं- "यवनराज ! मेरे मन में आपके प्रति क्रोध है ही नहीं। तो क्षमा क्या करूँ? मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि आप अन्याय, अनीति का मार्ग छोड़ दें। युद्ध की जगह शांति और द्वेष की जगह प्रेम का व्यवहार सीखें।" यवनराज-"स्वामी ! आप आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है ?" पार्श्वकुमार-"आप प्रसेनजित राजा से क्षमा माँगकर उनके साथ मित्रता स्थापित करें। अपने राज्य में जाकर न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करें। न तो मुझे आपका राज्य चाहिए और न ही आपको सेवक बनाना है।" यवनराज-"धन्य है आपकी उदारता और महानता। बिना युद्ध किये ही आपने मुझे अपना सेवक बना लिया।" सैनिकों ने जाकर राजा प्रसेनजित को समाचार दिया-"महाराज ! चमत्कार हो गया ! पार्श्वकुमार ने बिना युद्ध किये ही यवनराज को अपने अधीन कर लिया है।" प्रसेनजित राजा अनेक प्रकार के उपहार लेकर पार्श्वकुमार के पास आया। हाथ जोड़कर बोला-"स्वामी ! आपने तो अभूतपूर्व काम कर दिया। भयंकर नरसंहार से भी जो काम नहीं बनता, वह अपने प्रभाव से सहज ही बना दिया।" पार्श्वकुमार-"ये आपके मित्र यवनराज हैं।" 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.org

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