Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 53
________________ पार्श्वकुमार घोड़े पर सवार होकर गंगा नदी के तट पर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा तापस के पूर्व-पश्चिम चारों दिशाओं में बड़ी-बड़ी लकड़ियाँ जल रही हैं। तापस बीच | में बैठा है। नगर जनों का झुंड चारों तरफ खड़ा है। ___पार्श्वकुमार ज्ञान बल से देखते हैं कि एक बड़े लक्कड़ में लम्बा-सा नाग है। लक्कड़ आग में जल रहा है-"अरे ! यह अनर्थ ! यह कैसा अज्ञान तप है !" करुणा से द्रवित पार्श्वकुमार ने तापस से कहा-"पंचेन्द्रिय जीवों को आग में होम कर आप यह कैसा तप कर रहे हैं।" तापस ने उत्तेजित होकर उत्तर दिया-"कुमार ! अभी तुम बालक हो। तप के विषय में तुम नहीं, हम तापस ही समझते हैं। तुम क्या जानो कि मेरी पंचाग्नि में कोई जीव जल रहा है?" पार्श्वकुमार के बहुत समझाने पर कि उस लक्कड़ में सर्प जल रहा है, तापस नहीं माना। तब पार्श्वकुमार ने सेवकों को आदेश दिया-"उस लक्कड़ को बाहर निकालो ! उसमें |एक नाग जल रहा है।" क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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