Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 25
________________ सखी हँसकर कहती है-"सखी ! सुवर्णबाहु राजा के सिवाय तेरी रक्षा कौन कर सकता है ? उसी को पुकार न ! वही तेरी रक्षा करने आयेगा।" सुवर्णबाहु ने छिपे हुए ही आवाज दी-"जब तक इस धरा पर वजबाहु पुत्र सुवर्णबाहु विद्यमान है, कौन उपद्रव कर सकता है। किसकी हिम्मत है ?" दोनों चौंक गईं-"किसी पुरुष की आवाज ! यहाँ कौन छिपा है ?" डरी-डरी | इधर-उधर देखती हैं। दोनों डरकर सहमकर आपस में लिपट जाती हैं। तभी सुवर्णबाहु सामने आ जाता है-"भद्रे ! डरो मत ! तुम तपस्वियों के जीवन में यहाँ कौन विघ्न करने वाला है? मुझे बताओ, मैं अभी उस दुष्ट का संहार करता हूँ।" डरी हुई-सी पद्मा ने उड़ते हुए भँवरे की तरफ इशारा किया-"यह।" सुवर्णबाहु हँसा-"बाले ! यह बिचारा तुम्हारी सुगंध का प्यासा भूला-भटका आ गया है। इससे क्यों डरती हो। लो, मुझे आया देखकर वह भी भाग गया।" दोनों सखियाँ इस तेजस्वी पुरुष को देखकर सहम जाती हैं। नंदा ने साहस करके पूछा-"आप कोई असाधारण पुरुष लगते हैं, कोई देव हैं ? विद्याधर हैं? कौन हैं आप..?" राजा हँसकर कहता है-"डरो मत ! मैं न तो देव हूँ, न ही विद्याधर। मैं महाराज सुवर्णबाहु का दूत हूँ। राजा की आज्ञा से इस तपोवन में ऋषियों की रक्षा करने आया हूँ।" क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary23Page Navigation
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