Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 32
________________ उठाकर आतापना ले रहे थे। उस समय एक खूँखार सिंह उधर आया। मुनि को देखते ही उसके भीतर क्रोध-द्वेष की ज्वाला जलने लगी। पूँछ उछालता, दहाड़ता वह सिंह मुनि पर झपट पड़ा। नाखूनों से मुनि के शरीर को चीर डाला। गिरते-गिरते मुनि ने अनशन ले लिया। शुभ भावों के साथ आयुष्य पूर्ण कर दशवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए। CALAG 700417 सुवर्णबाहु देव ने अपने देव परिवार को साथ लेकर नंदीश्वर द्वीप आदि क्षेत्रों में (भरतादि १० क्षेत्रों में) पाँच सौ बार तीर्थंकरों के पंचकल्याणक उत्सव मनाये। जिनेश्वर देवों की पूजा-अर्चा-भक्ति की। जिससे अतिशय पुण्य कर्मों का उपार्जन हुआ। माना जाता है क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ For Private & Personal Use Only 30 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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