Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 31
________________ तप-जप-साधना नहीं करूँगा तो भोगों की आसक्ति के कारण अगले जन्म में दुर्गति में जाना पड़ेगा। इस प्रकार चिन्तन करते हुए सुवर्णबाहु को वैराग्य प्राप्त हुआ। उसने पुत्र को राज्यभार सौंपकर तीर्थंकर भगवान के पास संयम दीक्षा ग्रहण कर ली। अनेक प्रकार के तप, कायोत्सर्ग साधना अभिग्रह करते हुए सुवर्णबाहु ने पुनः-पुनः बीस स्थानकों की आराधना कर तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। एक बार मुनि सुवर्णबाहु किसी पर्वत शिखर पर जाकर सूर्य के सामने दोनों भुजाएँ 2 सिद्ध अरिहंत 3 प्रवचन आचार्य स्थविर उपाध्याय साधु ज्ञान 9 दर्शन 10 विनय 1110 चारित्र १ मति मन: पर्यव केवल ३ अवधि SION (13 क्रिया न ब्रह्मचर्य जिन 11 तप | गौतम ज्ञान 20 16. संयम 18 19) तीर्थ । अभिनव ज्ञान 29 lain Education International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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