Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 30
________________ एक बार चक्रवर्ती महलों के गवाक्ष में बैठे थे। आकाश से देवताओं के झुंड आते दिखाई दिये। सोचने लगे-'आज यहाँ इतने देव क्यों आ रहे हैं ?' तभी उद्यानपालक ने सूचना दी-"महाराज! नगर में तीर्थंकर भगवान पधारे हैं।" चक्रवर्ती ने आसन से उठकर भगवान की दिशा में वन्दना की। फिर राजपरिवार के साथ देशना सुनने आया। समवसरण में देवताओं को देखकर विचारने लगा- 'मैंने पहले भी ऐसे देवताओं को कहीं देखा है ?" ____ गहरे विचार में डूबने पर जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। अपना पूर्वभव याद आया-'अहो ! मैंने पूर्वभव में तप व कायोत्सर्ग ध्यान साधना की थी। उसी के प्रभाव से मैं स्वर्ग में देव बना और यहाँ पर चक्रवर्ती की समृद्धि मिली है। यहाँ पर जो भी मिला है, वह तो पूर्व जन्म में किये हुए शुभ कर्मों का फल है। अब यदि इस जन्म में मैं शुभ कर्म, DP (IVULUUIOMUUDAD DVD TOTTTTTTTTCOCOTING 28 Jain Education International क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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