Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 40
________________ अश्वसेन-"बड़े भव्य आत्मा थे।" "महाराज ! उन्होंने अपने पुत्र प्रसेनजित को राज्य सौंपकर दीक्षा ग्रहण कर ली।" राजा अश्वसेन-"धन्य है उन्हें ! जिस राज्य के लिए मनुष्य अपने प्राणों की बाजी लगा देता है। भयंकर युद्ध करके जिस राज्य को प्राप्त करता है, उसे तुच्छ समझकर त्याग देना सचमुच महान् त्याग है। धन्य है उन्हें।" सभी सभासद-"धन्य है उनके वैराग्य को।" राजा-"हाँ, तो आगे बताओ।" दूत-"महाराज ! उन महाराज नरवर्म के पुत्र प्रसेनजित राजा अभी राज्य का पालन करते हैं। महाराज प्रसेनजित की एक देव कन्या समान पुत्री है-प्रभावती।" राजा (मुस्कुराकर)-"हाँ, कन्या सुन्दर है, सुयोग्य भी होगी.........तो........?" राजा ने जिज्ञासा की। दूत-"महाराज ! जैसे फूलों की सुगंध से आकृष्ट होकर भँवरे आते हैं, वैसे प्रभावती के गुण व रूप की प्रशंसा सुनकर अनेक राजकुमार वहाँ आये, परन्तु उसने किसी को भी पसन्द नहीं किया ?" Jain E 38tion International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ .Page Navigation
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