Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 27
________________ ऋषि प्रसन्नता के साथ बोले-"आज हम धन्य हुए। चक्रवर्ती सम्राट् सुवर्णबाहु का इस तपोवन में स्वागत है !" W32874 ऋषि ने चम्पक वृक्षों के झुंड में एक ऊँची वेदिका पर सम्राट् को बैठाया। कन्द-मूल का भोजन कराया। फिर बोले-"राजन् ! ज्ञानी मुनि के वचन आज सत्य हो गये। (पद्मा की तरफ संकेत करके) यह आपकी अमानत है। इतने दिन मैंने इसको सँभाला। आज से आप इसे स्वीकार करें।" __ आश्रमवासी तपस्वी-तपस्विनियाँ आ गये। हर्ष उत्साह के साथ मंत्रोच्चारपूर्वक दोनों का विवाह कर दिया। पुत्री को विदा करते समय रानी ने उसे छाती से लगा लिया। आँखों से आँसू वर्षाती हुई बोली-"बेटी ! आज तुझे देने के लिए मेरे पास न तो हीरे-मोतियों के हार हैं, न ही सुन्दर वस्त्र हैं।" ___ पद्मा भी रोती हुई माँ के गले से लग गई-"माँ ! तेरा आशीर्वाद ही मेरे लिए सब कुछ है।" ऋषि ने कहा-"बहन ! तू ऐसा क्यों कहती है। तेरे पास ज्ञान व अनुभव के कितने दिव्य रत्न हैं।" DURAL S.Mitra क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ cation International 25 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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