Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 26
________________ दूसरी सखी ने एक कटासन बिछा दिया- "बैठिये आप !" और दोनों ने मधुर हास्य के साथ नमस्कार किया । पद्मा टुकर-टुकर निहारती है-'यह दूत तो नहीं हो सकता। जरूर यही सुवर्णबाहु है। इतना तेजस्वी, इतना सुन्दर ।' नीची नजर झुकाए उसने पूछा - "भद्र पुरुष ! आप हमारी रक्षा करने आये हैं, बहुत अच्छा किया। बैठिए हम अभी गुरुवर को सूचित करती हैं।" सुवर्णबाहु - "भद्रे ! आप कष्ट क्यों करती हैं। मैं ही ऋषिवर से मिल लूँगा।” फिर जरा नजदीक आकर बोलता है- "ओह! मैंने आपका परिचय तो पूछा ही नहीं।" पद्मा मुस्कराकर नीचे देखने लगती है। सहेली बोली - "भद्र पुरुष ! यह ऋषि कन्या लगती है न ? परन्तु यह ऋषि कन्या नहीं राजकन्या है।" "ओह ! यह तो इनकी शालीनता और सुन्दरता ही बताती है। क्या मैं जान सकता हूँ आपके भाग्यशाली माता-पिता कौन हैं ? राजमहल छोड़कर वन में क्यों आईं ?" सहेली ने कहा- "यह रत्नपुर के विद्याधर राजा की पुत्री है। इसका जन्म होते ही पिता की मृत्यु हो गई।" "ओह ! अशुभ हुआ.. ।" राजा बोला । फिर राज्य के लिए राजकुमार आपस में लड़ने लगे। राज्य में विद्रोह हो गया। तब इनकी माता रत्नावली अपनी पुत्री को लेकर यहाँ आश्रम में आ गईं। गालव ऋषि रानी के भाई हैं।" राजा-‘“तो महाराज सुवर्णबाहु के विषय में आपने कब सुना ?" सहेली - एक दिन यहाँ कोई ज्ञानी मुनि पधारे थे। तब ऋषिवर ने मुनिवर से पूछा - "मुने ! इस कन्या का पति कौन होगा ?" ज्ञानी ने बताया- "वज्रबाहु राजा के पुत्र चक्रवर्ती सुवर्णबाहु को वक्र शिक्षित अश्व यहाँ लेकर आयेगा और वे इस कन्या का वरण करेंगे। यह चक्रवर्ती सम्राट् की पटरानी होगी।” राजा हँसा - "ओह ! यह रहस्य है। आप तो सचमुच ही महारानी बनने योग्य हैं।" तब तक राजा के अंगरक्षक सैनिक भी आ पहुँचे। सभी ने सम्राट् सुवर्णबाहु की जय बोली। सैनिकों को देखकर पद्मा सहेली के साथ वहाँ से चली गई। सहेली ने ऋषि से कहा- “गुरुदेव ! महाराज सुवर्णबाहु हमारे आश्रम में पधारे हैं।" ऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए - " अहा ! आज ज्ञानी संत का वचन सत्य हो गया।" फिर गालव ऋषि, रानी रत्नावती तथा अन्य आश्रमवासी सम्राट् का स्वागत करने आये । राजा ने ऋषि को प्रणाम किया । 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ www.jainelibrary_g

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