Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058 Author(s): Jinottamsuri, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 20
________________ एक दिन वजनाभ मुनि की इच्छा हुई-सुकच्छ विजय में भी तीर्थंकर भगवान विचर रहे हैं। वहाँ जाकर उनके दर्शन करूँ। आकाशमार्ग से उड़कर मुनि सुकच्छ विजय में पहुँचे। तीर्थंकर भगवान के दर्शन किये। भगवान ने देशना में कहा-"काउसग्ग सव्व दुक्ख विमोक्खणो-कायोत्सर्ग सब दुःखों से मुक्ति दिलाता है।" - मुनि ने सोचा-'प्रभु ने कायोत्सर्ग का महान् फल बताया है। मैं काउसग्ग करूँ।' मुनि पर्वत की गुफा के पास जाकर कायोत्सर्ग करने लगे। कमठ का जीव सर्प योनि से मरकर नरक में गया था। वहाँ से निकलकर वह इसी जंगल में भील बना था। जंगल के जीवों को मारकर वह अपनी जीविका चलाता था। एक दिन वह भील शिकार करने उधर आया। रास्ते में मुनि मिले। भील को क्रोध आया-"अरे ! मुंडे सिर वाला सामने मिल गया। अपशकुन हो गया। आज शिकार नहीं मिलेगा।" ____ मुनि की तरफ देखने से मन में पूर्वजन्म के बैर संस्कार जगे-"चलो, पहले इस दुष्ट अपशकुनी का ही शिकार कर लूँ।" भील ने अपना विष बुझा तीर मुनि की छाती पर फेंका। तीर चुभते ही मुनि के शरीर से खून के फव्वारे छूट गये और धड़ाम से भूमि पर गिर पड़े। गिरते-गिरते मुनि के मुँह से निकला-"नमो जिणाणं.........।" भील खुशी से नाचने लगा-"अहा ! बड़ा मजा आया। पहला शिकार अच्छा मिला।" मुनि भूमि पर गिर पड़े। वेदना से शरीर जलने लगा। फिर भी शांत और प्रसन्न थे। अपने ज्ञानबल से देखा-"अरे! यह तो वही कमठ का जीव है। मैंने इसका अपकार किया था, इसी कारण आज इसने मुझे कष्ट दिया।" _फिर मुनि सोचने लगे-'इसने जो किया, वह मेरे लिए अच्छा ही हुआ। कर्मों की निर्जरा हो रही है। पुराने कर्मों का कर्ज चुक रहा है।' ___ मुनि उठकर बैठ गये। शरीर से रक्त की धारा बह रही थी। परन्तु मुनि शरीर की ममता से मुक्त होकर आत्म भाव में स्थिर हो गये। "अरिहंतों को नमस्कार ! सिद्ध भगवंत को नमस्कार। अब मेरा जीवन दीप बुझने वाला है। मैंने आज तक प्रमादवश जो कोई भूल की हो, असद् विचार किया हो, उसका तस्स मिच्छामि दुक्कड़। अरिहंत-सिद्ध प्रभु की साक्षी में अपनी आत्मा की साक्षी में मैं जीवन पर्यंत अनशन व्रत ग्रहण करता हूँ। समस्त जीवों से क्षमापना करता हूँ।" इस प्रकार शुद्ध निर्मल भाव धारा में बहते हुए मुनि ने अत्यन्त समाधिपूर्वक देह त्याग किया। मध्य ग्रेवेयक देव विमान में देव बने। स्वर्ग का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह की पुराणपुर नगरी में जन्म लिया। क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ 18 Wan Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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