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संस्मरणात्मक जीवन चरित्र लिखने की आपकी प्रवीणता अनोखी थी। आपकी कृतियों का सौष्ठव, गांभीर्य एवं संगीतमयता - ये सब मनोमुग्धकारी हैं।
'भगवई' अंग-ग्रंथों में सबसे विशाल अंग है। विषयों की दृष्टि से वह एक महान् उदधि है। जयाचार्य ने इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आगम-ग्रंथ का भी राजस्थानी भाषा में गीतिकाबद्ध पद्यानुवाद किया। यह राजस्थानी साहित्य का सबसे बड़ा ग्रंथ माना गया है। इसमें मूल के साथ टीका-ग्रंथों का भी अनुवाद है और वार्तिक के रूप में अपने मंतव्यों को बड़ी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है। इसमें विभिन्न लय में ग्रथित ५०१ ढालें तथा कुछ अन्तर ढालें हैं । ४१ ढालें केवल दोहों में हैं । ग्रन्थ में ३९२ रागिनियां प्रयुक्त हैं।
साहित्य की बहुविध दिशाओं में आगम ग्रंथों पर आपने जो कार्य किया, वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राकृत आगमों को राजस्थानी जनता के लिए सुबोध करने की दृष्टि से उन्होंने उनका राजस्थानी पद्यानुवाद किया, जो सुमधुर रागिनियों में ग्रथित है ।
प्रथम आचारांग की जोड़, निशीथ की जोड़, ज्ञाता की जोड़, उत्तराध्ययन की जीड़, अनुयोगद्वार की जोड़, पन्नवणा की जोड़, संजया की जोड़, नियंठा की जोड़ ये कृतियां इस दिशा में उनके विस्तृत कार्य का परिचय देती हैं।
इसमें ४६६३ दोहे, २२२५४ गाथाएं, ६५५२ सोरठे, ४३१ विभिन्न छंद, १८८४ प्राकृत, संस्कृत पद्य तथा पर्याय आदि ७४४६ पद्य परिमाण ११६० गीतिकाएं, ६३२६ पद्य - परिमाण ४०४ यंत्रचित्र आदि हैं। इसका अनुष्टुपू पद्य परिमाण ग्रंथाग्र ६०९०६ है ।
प्रस्तुत प्रकाशन 'भगवती-जोड़' उक्त कृति के चार शतकों को समाविष्ट करता हुआ उसका प्रथम खण्ड है ।
मूल राजस्थानी कृति के साथ सम्बन्धित आगम पाठ और टीका की व्याख्या गाथाओं के समकक्ष में दे दी गई हैं, जिससे पाठकों को समझने की सहूलियत के साथ-साथ मूल कृति के विशेष मंतव्य की जानकारी भी हो सकेगी।
इस ग्रंथ का कार्य वाचक युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी के तत्त्वावधान में हुआ और साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने उनका पूरा-पूरा हाथ बंटाया और आचार्यश्री के शब्दों में ही घोर परिश्रम किया है ।
इसका सम्पादकीय प्रधान सम्पादक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रस्तुत है ।
ऐसे ग्रंथ रत्न को प्रकाशित करते हुए जैन विश्व भारती अपने को अत्यन्त गौरवान्वित अनुभव कर
रही है।
श्री जयाचार्य जैसे पुनीत पुरुष की निर्वाण शताब्दी के अवसर पर जय वाङ्मय एवं तत् सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण साहित्य प्रकाशित करने की विशाल योजना जैन विश्व भारती के सम्मुख है और हमें पूरा विश्वास है कि आप सबके सहयोग से यह संस्था उसे पूरा कर पाएगी।
श्री जयाचार्य निर्वाण शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में मित्र परिषद्, कलकत्ता ने जैन विश्व भारती प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हेतु दो लाख रुपयों की राशि प्रदान करने की कृपा की है। उक्त मुद्रणालय जैन विश्व भारती को साहित्य - प्रकाशन के क्षेत्र ने द्रुतगति से बढ़ने में सहायक होगा। इस अवसर पर हम मित्र परिषद् के पदाधिकारियों एवं सदस्यों के प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन करते हैं ।
श्री जयाचार्य निर्वाण शताब्दी समारोह समिति को भी उनके आर्थिक सौजन्य के लिए हम अनेक धन्यवाद ज्ञापित करते हैं ।
लाडनूं ( राज० ), सितम्बर, १९८१
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श्रीचन्द रामपुरिया अध्यक्ष, जैन विश्व भारती
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