Book Title: Bhagavana Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Author(s): Chandanamati Mata
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
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में गहरा अध्ययन इस कार्य में विशेष सहयोगी रहा। इसी तरह सरल परिणामी श्री कोपलचंद जैन साहब (रिटायर्ड प्रिंसिपल,दमोह) का अंग्रेजी व्याकरण के क्षेत्र में दीर्घकालीन अनुभव हिन्दी परिभाषाओं का अंग्रेजी रूपान्तरण करने में विशेष सहयोगी रहा। कार्य के दौरान आप से मैंने चाहे जितनी नोकझोंक की हो लेकिन उनके व्यवहार में मैंने हमेशा उत्कृष्ट सरलता को पाया। मैं उनको सहृदयता से प्रणाम करता हूँ। वाचना के दौरान विशेष निधि स्वरूप ब्रह्मचारिणी स्वाति बहन जी का सहयोग प्राH हुआ जिनकी तार्किक बुद्धि और पार्मिक ज्ञान ने इस कार्य की कुशलता में विशेष महत्त्व रखा।
व्यक्तिगत आनंद की अनुभूति तब हुई जब वाचना के दौरान मुझे दोनों माताजी के साथ पार्मिक चर्चा का तो सौभाग्य मिला ही, साथ में उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कई कहानियाँ सुनने का मौका भी मिला, उनकी : हॅसी देखने का एवं उरोजगार एनम गरि हँगने का मौका भी मिला जो मेरे जीवन के अविस्मरणीय पलों के रूप में स्थापित हैं। अंदरूनी बात कहूँ कि इस कार्य की विस्तृतता के कारण हास्यरूप से बीच-बीच में यह भी महसूस किया गया कि यह कार्य कभी खत्म भी होगा या नहीं, इसमें गलतियाँ निकलने का क्रप क्या हमेशा चालू रहेगा या कभी खत्म भी होगा? इस तरह की कल्पनाओ ने इस कार्य से जुड़े हर एक सदस्य को कम से कम एक बार तो घेर ही लिया। इसी के चलते मेरे साथ एक शुभ घटना घटी। मुझे राजकोट में किसी संस्थान में व्याख्याता के रूप में एक नौकरी मिली अत: मैंने माताजी के जन्मदिन 10 अक्टूबर 2003 को उनके चरणों में संपूर्ण कार्य का एक 600 पृष्ठीय विस्तृत टंकित संकलित प्रारूपण (जिसकी वाचना एवं पुन:शुद्धिकरण शेष था) भेंट कर राजकोट जाने का मन बना लिया, सारी तैयारी भी की गई और घर से निकल भी गये, निकलते-निकलते जब इंदौर में विराजमान परमपूज्य उपाध्याय श्री निजानंद सागर जी महाराज के दर्शन करने मैं गया तो उनके मुख से पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के सम्मान में जो शब्द निकले उन्होंने तो मेरा प्रोग्राम ही बदल दिया अर्थात् राजकोट जाते हए मेरे कदम वापस हो गए। उन्होंने मुझे यही कहा कि माताजी के इस कार्य को पूरा किए बिना तुम्हें कुछ भी नहीं सोचना है तथा असमय मैं तुम्हारे द्वारा लिया गया यह निर्णय ठीक नहीं है । बहुत देर चर्चा के उपरांत निष्कर्ष रूप से उन्होंने मुझे एक ही बात कही कि 100000 रु. महीने की भी नौकरी यदि तुम्हे मिलेगी तो तुम नहीं जाओगे पहले माताजी के इस शब्दकोश का कार्य पूर्ण करो, जीवन में सफलता पाओगे । और मैं उनको यचन देकर दुबारा घर पहुँचा तब मुझे देखकर सब स्तब्ध हो गये कि ट्रेन छूट गई क्या? तब मैंने सारी बात घर वालों को बतायी और गुरु के वचन की महत्ता का ध्यान रखते हुए इस शब्दकोश की वाचना के लिए 12 नवंबर 2003 को कुण्डलपुर माताजी के पास पहुंचा और इस कार्य को पूज्य माताजी के सानिध्य में पूर्ण किया। आज सभी के कठोर परिश्रम से इस महान कार्य की पूर्णता पर मुझे बहुत प्रसन्नता है।
इस जटिल कार्य को यद्यपि अत्यंत ही सावधानी से किया गया है फिर भी कदाचित संशोधन की संभावना हो सकती है चूंकि पाठक ही किसी कृति के सर्च समीक्षक होते हैं अतः आपके रचनात्मक सुझाव एवं समीक्षा अपेक्षित हैं । दिनांक : 16-7-2004
जीवन प्रकाश जैन, इंदौर
M.SC. (Mathematics) [34]