Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 8
________________ सामायिक की गहराई में उतरना चाहिए पुस्तक में कलात्मक चित्र अच्छे लगते हैं। अहमदनगर का आनंदधाम मन में बसा हुआ है। उसका फोटो चाहिए था। अहमदनगर के मित्र भूषण देशमुख को फोन करते ही उन्होंने 'नगर दर्शन' से उस चित्र को लेने के लिए सहर्ष सम्मति दे दी। विलास गीते हो या सुधीर मेहता, हर काम के लिए तत्पर रहते है। कोलकाता में मनोज हो या अंजू हमेशा मदद के लिए तत्पर रहते हैं। इन सबको धन्यवाद। मेरी हिन्दी शुद्ध नहीं है। पुस्तक लिखने की जितनी मेहनत होती है उससे अधिक काम मेरे पति दीपचंदजी को करना पड़ता है। मेरे संसारपक्षीय ननद साध्वी कनकश्रीजी प्रबुद्ध और गजब की लेखिका है। हमेशा मुझे मार्गदर्शन करते हैं। ऐसे न जाने कितने व्यक्ति हैं, जिनके नामों का उल्लेख करना मुश्किल है, सबको मैं तहेदिल से धन्यवाद देती हूँ। सूरत में सबसे कठिन कार्य हिन्दी टाइपिंग और पुस्तक सेटिंग होता है। मुझे सौभाग्यवश मुर्तजा खंभातवाला जैसा कम्प्यूटर में प्रवीण और माहिर व्यक्ति मिला, प्रूफ रीडिंग का कठिन कार्य श्री सुरेशजी पाण्डेय ने बहुत ही कम समय में बहुत ही अच्छा कर दिया। केतनभाई प्रिन्टर जो हमारे फेमिली फ्रेन्ड है उन्होंने नवसारी से आकर पुस्तक के प्रिन्टिंग और बाइन्डिंग तक का पूरा कार्य आसानी से और समय पर पूरा करके दिया। ममतामयी साध्वी प्रमुखाश्रीजी, साध्वी कनकश्रीजी की हमेशा मुझ पर कृपादृष्टि रही है।सभी साधू-साध्वियां हमेशा मार्गदर्शन देते रहे है। स्थानकवासी सभी साधु-साध्वियों का स्नेह ही मुझे गति-प्रगति के लिए प्रेरणा देता रहा है। सबको मैं धन्यवाद देती हूँ। ___ मैंने जो भी ज्ञान पाया है उसका अधिकांश भाग परमपूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की पुस्तकों के माध्यम से पाया है। जिन्हे मैं बार-बार पढ़ती रहती हूँ। सब कुछ गुरु द्वारा पाया है और गुरु को ही समर्पित है। मैं भाग्यवान हूँ-मिले ऐसे गुरु महान – अथांग है जिनका ज्ञान। मैंने शादी होने तक कभी सामायिक नहीं की थी। इसका कारण यही था, सही अर्थ बताने वाला कोई मिला नहीं था। मैं कभी भी, क्रिया कांड पर विश्वास नहीं करती और केवल करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकती। तेरापंथ में आने के बाद जैसे-जैसे सही गुरु, सही ज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति से आध्यात्म को जानने की दृष्टि मिली, सच कहती हूँ मैं गद्गदू हो जाती थी। कभी मन से टीस उठती, यह सब पहले क्यों नहीं मिला? जैसे सामायिक शुरु की, पहले पहले केवल पुस्तकें पढ़ती थी। गुरुदेव तुलसी की अभिनव सामयिक के प्रयोग करने लगी और धीरे-धीरे सामायिक क्या है? यह समझ में आने लगा। आचार्यश्री के एक-एक शब्द के पीछे क्या रहस्य छिपा है ? इसका सही अर्थ क्या है ? यह जानने का प्रयत्न करती थी। कभी असमंजस में पड़ जाती, कभी उलझ जाती परंतु विश्वास था गुरुवर का एक-एक शब्द अनमोल है। ज्ञान का खजाना है, इसे समझना है। इस प्रकार हमें शुद्ध सामायिक करनी है तो पहले हमें जैन धर्म को जानकर, सामायिक को समझकर प्रयोग करना चाहिए। इसमें नमस्कार मंत्र का जाप करते हैं, उसे भी समझकर, श्रद्धा से विधिवत् जाप करेंगे तो अधिक लाभ होगा। प्रेक्षाध्यानप्राणायाम के प्रयोग करने से सामायिक का बहुत लाभ मिलता है तथा सामायिक के उद्देश्य सफल होने में सहजता होती है। तत्वज्ञान का भी जैनधर्म में बहुत महत्त्व है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की पुस्तकें पढ़ने से एक-एक शब्द से अपार ज्ञान प्राप्त होता है। मैंने जो कुछ सामाविक की इस पुस्तक में लिखा है, संपूर्ण गुरुदेव की पुस्तकों में से संकलित है। उनके एक-एक वाक्य का इतना गहरा अर्थ है, जैसे आचार्य श्री सामायिक के बारे में कहते हैं- “सामायिक स्वयं ध्यान है।" "अध्यात्म का प्रथम सोपान - सामायिक महाप्रज्ञजी का पहला ही वाक्य है - "सामायिक की निष्पत्ति है ध्यान और

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