Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 44
________________ मंगल गान नमस्कार महामंत्र गीत सांस-सांस में रहे निनादित महामंत्र नवकार ले ले सहारा हो जाए बेड़ा पार।। महामंत्र नवकार हृदय का अमृत है, एक-एक अक्षर ऊर्जा से संभृत है। जपे जाप तो खपे पाप, यह लोकोत्तर उपहार।। पूण्य स्मरण से जो करता दिन की शुरुआत, उदिता मुदिता शुचिता की होती बरसात। मन प्राणों में नयी शक्ति का, होता है संचार।। (तर्ज-धर्म की जय हो) श्रद्धा विनय समेत णमो अरिहताणं। प्रांजल प्रणत सचेत णमो अरिहंताणं ॥ध्रुवपद ॥ आध्यात्मिक पथ के अधिनेता, वीतराग प्रभु विश्व विजेता, शरच्चन्द्र सम श्वेत णमो अरिहंताणं ॥१॥ अक्षय, अरुज, अनन्त, अचल जो, अटल, अरुप, स्वरुप अमल जो, अजरामर, अद्वैत, णमो सिद्धाणं ॥२॥ धर्म-संघ के जो संवाहक, निर्मल धर्म-नीति निर्वाहक, शासन में समवेत, णमो आयरियाणं ॥३॥ आगम अध्यापन में अधिकृत। विमल कमल सम जीवन अविकृत। शम-संयम-समुपेत णमो उवज्झायाणं ॥४॥ आत्म साधना लीन अनवरत, विषय-वासनाओं से उपरत। 'तुलसी' है अनिकेत णमो लोए सव्व साहूणं ॥५॥ - आचार्य तुलसी भोजन से पहले शुभ भावों से सुमरे, चिंता, लोभ और रस लोलुपता विसरे। कहते ज्ञानी महामंत्र यह, आध्यात्मिक उपचार।। जपते जपते मंत्रराज जो शयन करे, सोए सुख की नींद शांति से नयन ठरे। मिले तनावों से छुटकारा, खुले सिद्धि के द्वार।। भोजन, शयन, जागरण ये मंगलमय हो, तन से, मन से निर्भय और निरामय हो। 'कनक' (स्वस्थ) जैन जीवन शैली को, देना है आकार।। तर्ज : बार-बार तोहे... प्रातः उठकर मैं करूँ, महामंत्री का जाप । और करुं शुभ भावना, कट जाए सब पाप ॥ भोजन से पहले करें, तीन बार नवकार। छोटा तप नवकारसी, जैनों का आचार॥ स बन अहम्न शयने वर्तनात् पूर्वमाराध्यस्मरणं भवेत् । तः शय्या विधातव्या, कायोत्सर्ग सुखं सदा ।। या |बन अहम्स सोने से पूर्व आराध्य का स्मरण करना चाहिए। के बाद कायोरप्सर्ग में सुखपूर्वक शयन करना शारिश।

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