Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 43
________________ श्री पैंसठिया छन्द १. श्री नेमीश्वर सम्भव स्वाम, सुविधि धर्म शान्ति अभिराम। अनन्त, सुव्रत, नेमिनाथ सुजाण, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण ॥ अजितनाथ, चन्दा प्रभु धीर, आदीश्वर सुपार्श्व गम्भीर। विमलनाथ विमल जग-भाण, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण ॥ ३. मल्लिनाथ जिन मंगल रूप, पंचबीस धनुष सुन्दर स्वरूप। श्री अरनाथ नमूं वर्धमान, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण ॥ ४. सुमति, पद्म प्रभु अवतंस, वासुपूज्य, शीतल श्रेयांस। कुंथु, पार्श्व, अभिनन्दन भाण, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण॥ ५. इण परे श्री जिनवर संभारिए, दुःख दारिद्रय निवारिए। पच्चीसे पैंसठ परमाण, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण ॥ ६. इण भणतां दुःख नावे कदा, जो निज पासे राखै सदा। धरिये पंचतणुं मन ध्यान, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण ॥ ७. श्री जिनवर नामे वांछित मिले, मन वांछित सहु आशा फले। धर्मसिंह मुनि नाम निधान, श्री जिनवर मुझ करो कल्याण॥ परमेष्ठी वंदना वन्दना आनन्द-पुलकित, विनयनत हो मैं करूं। एक लय हो एक रस हो भाव तन्मयता वरूं ॥ णमो अरहंताणं (अरहंतो को मेरा नमस्कार हो। वे कैसे हैं ?) १. सहज निज आलोक से भासित स्वयं संबुद्ध हैं। धर्म तीर्थंकर शुभंकर, वीतराग विशुद्ध हैं। गति-प्रतिष्ठा त्राण-दाता, आवरण से मुक्त हैं। देव अर्हन् दिव्य योगज अतिशयों से युक्त हैं। णमो सिद्धाणं (सिद्धों को मेरा नमस्कार हो। वे कैसे हैं ?) २. बंधनों की श्रृंखला से, मुक्त शक्ति-स्त्रोत हैं। सहज निर्मल आत्मलय में सतत ओतःप्रोत हैं। दग्ध कर भव बीज अंकुर, अरुज अज अविकार हैं। सिद्ध परमात्मा परम, ईश्वर अपुनरवतार हैं। णमो आयरियाणं (धर्माचार्यों को मेरा नमस्कार हो । वे कैसे हैं ?) ३. अमलतम आचार धारा, में स्वयं निष्णात हैं। दीपसम शत दीप दीपन के लिए प्रख्यात हैं। धर्म शासन के धुरन्धर, धीर धर्माचार्य हैं। प्रथम पद के प्रवर प्रतिनिधि, प्रगति में अनिवार्य हैं। णमो उवज्झायाणं (उपाध्यायों को मेरा नमस्कार हो । वे कैसे हैं ?) ४. द्वादशांगी के प्रवक्ता, ज्ञान गरिमा पुंज हैं। साधना के शान्त उपवन में सुरम्य निकुंज हैं। सूत्र के स्वाध्याय में संलग्न रहते हैं सदा। उपाध्याय महान श्रुतधर, धर्म-शासन सम्पदा॥ णमो लोए सबसाहूण (लोक के सब साधुओं को मेरा नमस्कार हो।वे कैसे हैं ?) ५. सदा लाभ अलाभ में,सुख-दुःख में मध्यस्थ हैं। शान्तिमय, वैराग्यमय,आनन्दमय आत्मस्थ हैं। वासना से विरत आकृति, सहज परम प्रसन्न हैं। साधना धन साधु अन्तर्भाव में आसन्न हैं। बने अहम् क्षमण के समय सवा दीर्घश्वास का प्रयोग कऊना चाहिए। या साटन-योगा है और शरीर के लिए भी लाभदायी है। श्री पैंसम्यिा यंत्र ६ | | १९ | ६ । १२ १० २३ | ४ बनें अहम् दीर्घश्वासनयोगः स्याद, क्षमणसमये सदा। सहजः साधनयोगः, गाचे चापि सुखं भवेत् ॥

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