Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 45
________________ प्रायश्चित गीत तीर्थकर वंदना स्वीकारो सविनय भाव-वंदना तीर्थकर भगवान! तीर्थकर भगवान! निरंतर ध्याउं थारो ध्यान।। जो कुछ भी पाप हुआ मुझसे, मिच्छा मि दुक्कड़ लेता हूं, भगवान आपकी साक्षी से, मिच्छा मि दुवाडं लेता हूं, गुरुदेव! आपकी साक्षी से, मिच्छा मि दुलार्ड लेता ई. अपनी आत्मा की साक्षी से. मिच्छा मि दुकाई लेता हूं. आदीश्वर श्री ऋषभनाथजी, अजित अजित संकल्प। संभव अभिनंदन प्रभु मेटो मन रामलिन विकल्प। सुमति पद्मप्रभ श्री सुपार्श्व चंदाप्रभु सुविधि महान।। साताकारी शीतल प्रभु श्रेयांस श्रेय दातार। वासुपूज्य जिन सुर-नर वंदित विमल विमल आचार। यो आलोक अनंत! मिटाऊंभीतर रोअज्ञान।। धर्मनाथजी! आत्म धर्म में, रहूंसदा मैं लीन। शांति, कुंथु, अर तीनूं चक्री, अर्हत् पद आसीन। महिमामय मल्ली प्रभु महिला-जागृति रा प्रतिमान।। मुनिसुव्रत, नमि, करुणा सागर नेमी ज्योतिर्धाम। चिंतामणि सम पारस प्रभुजी! श्रद्धासिक्त प्रणाम। वर्धमान द्यो आत्म-शाति, आरोग्य, बोधि रो दान।। १. पंचाश्रव पाप अठारह का, जो सेवन किया कराया हो। इस भव में या पिछले भव में, मिच्छा मि दुक्कडं लेता हूं। २. कर्मों के कर्ता राग द्वेष, ये नाच नचाते हैं मुझको। इनके वश जो दुष्कर्म किये, मिच्छा मि दुक्कड लेता हूं। ३. कहां कहां पर मैंने जन्म लिए? कहां कहां पर कैसे मरण किए? है अता पता कुछ भी न कहीं, मिच्छा मि दुक्कड लेता हूं। ४. कितनों से नाता जोड़ा है, कितनों से नाता तोड़ा है। उन सबसे खमत खामणा कर, मिच्छा मि दुक्कडं लेता हूं। ५. जो मद-प्रमाद में पाप हुए, अनजान-जान में पाप हुए। उन सब का आत्म साक्षी से, मिच्छा मि दुक्कडं लेता हूं। ६. सम्यग्-दर्शन सद्ज्ञान-चरण, का कभी नहीं आचरण किया। भटका मिथ्यात्व मोह में जो, मिच्छा मि दुक्कडं लेता हूं। ७. भव-भव में मुझको बोध मिले, संयम समता के फूल खिले। मुनि शोभा आत्म शांति पाने, मिच्छा मि दुक्कडं लेता हूं। - मुनि शोभालालजी प्रातः सांय निरमल मन स्यूं समरुं जिन चौबीस। मन मंदिर में सदा विराजो विहरमाण प्रभु बीस। शुद्ध बुद्ध परमात्म बगूं कर वीतराग प्रणिधान।। शासन-शेखर ग्यारह गणधर, सोलह सती स्वतंत्र। भी.भा.रा.ज.म.मा.डा,का.तु.म. महा महिम गुरु मंत्र। तुलसी महाप्रज्ञ रो शरणो ‘कनक' सिद्धि सोपान ।। तर्ज : बाजरिया थारो खीचड़ो... जानूं जीव अजीव मैं, पुण्य-पाप की बात। आश्रव संवर, निर्जरा, बन्ध मोक्ष विरख्यात ।। शैथिल्य स्थिरता नूनं, गाने कार्य प्रयत्जतः। न हमाचलसिले माल टीचश्वासो भवेत पुनः ॥ युगम् ॥ बन अहम अभ्यासपूर्जक शरीर को शिथिल व स्थिर करें। दासाटी तास का प्रयोग करें।

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