Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 12
________________ आवश्यक छह है१) सामायिक, २) चतुर्विशतिस्तव, ३) वंदना, ४) प्रतिक्रमण, ५) कायोत्सर्ग. ६) प्रत्याख्यान आवश्यक के छह भेद हैं, उनमें प्रथम आवश्यक 'सामायिक' का विशेष महत्त्व है। आचार्य भद्रबाहु ने जितना विस्तार सामायिक का किया है, उतना अन्य भावरूपकों का नहीं किया। श्रावक के १२ व्रतों में सामायिक नवें व्रत के रुप में प्रसिद्ध है। चार शिक्षाव्रतों में प्रथम स्थान सामायिक को प्राप्त है। सामायिक केवल मुंह बांधकर या ४८ मिनट एक जगह बैठना नहीं है। सामायिक में दो बातें आवश्यक है, (१) बाधक तत्वों का वर्जन, (२) साधक तत्वों का प्रयोग। अभिनव सामायिक के प्रयोग में गुरुदेव यही फरमाते हैं - "लोग एक बात करते हैं, दूसरी छोड़ते हैं, इसलिए परिणाम नहीं आता।" धर्म हो या सामायिक, प्रभावहीन बन रही है, क्योंकि हम कोरा सिद्धांत जानते हैं, तर्क करते हैं, प्रयोग और अनुभव दोनों छूट जाते हैं। इसलिए प्रयोग करो, तभी अनुभव आएगा। सामायिक में स्थिर और एकाग्र होकर नियमित अभ्यास करें। देखते-देखते जीवन प्रकाशमय बनेगा। हर समस्या का समाधान मिलेगा। इसलिए आगम के इस वाक्य को हमेशा याद रखें। "इयाणिं णो जमहं पुब्बमकासी पमाएणं" - यानी 'अब तक मैंने प्रमादवश जो किया, उसे पुनः नहीं करूँगा' यह हमारे विकास का सूत्र बने। हम जानने की कोशिश करते हैं, सामायिक क्या है? क्यों करनी, कब करनी, कैसे करनी है, इसके फायदे क्या हैं? शुद्ध सामायिक कैसे होती है ? सामायिक के दोष कितने ? कौन से? सामायिक कब शुरु हुई, किसने की ? चिंतन करें, क्या मैं सही तरीके से सामायिक कर रहा हूँ? जैन साधना का प्रायोगिक, आध्यात्मिक अनुष्ठान है - "आवश्यक"। इसका नाम आवश्यक इसलिए पड़ा है क्योंकि श्रमणों एवं श्रावकों के लिए यह आवश्यक करणीय है। आवश्यक का एक नाम 'प्रतिक्रमण' जो अधिक प्रसिद्ध है। जो क्रोधादि कषायों को दूर कर, ज्ञानादि गणों से आत्मा को भावित करता है, वह आवश्यक है। आवश्यक में जो शाश्वत आध्यात्मिक तत्व निबद्ध है, वे प्रवाह रुप से अनादि हैं। आवश्यक के कर्ता एवं रचना काल के बारे में इतिहास में कोई सामग्री नहीं मिलती। सामायिक का मोल नहीं है सामाधिक का लोल नहीं है बाल श्रेणीक को सम्झाई प्रभु महावीर ने। सामायिक न अहम अहेन्नेव परो देवो, वीतरागत्वसंयुतः। तापमोचनं नास्ति, जिनमविलः सुखण्टा । बने अहम तीतराना तु पाठमदेव है। नाम से कोई प्रयोजन नहीं, जिनेश्वर की शक्ति सुख देने वाली है।

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