Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 29
________________ BY "सामायिक स्वयं ध्यान है" यह मंगल भावना का मंत्र सबके लिए आवश्यक है, क्योंकि कोई व्यक्ति अकेला नहीं है, निरपेक्ष नहीं है, सब सापेक्ष हैं। मंगल सूत्र के बाद आता है मंगल पाठ।जैन परम्परा में सबसे अधिक प्रचलित है मंगल सूत्र। मंगलचार हैं - अर्हत्, सिद्ध, साधु और धर्म। नमस्कार महामंत्र में पंच परमेष्ठि मंगल है, मंगल पाठ में चार मंगल हैं। तीन मंगल तो नमस्कार महामंत्र के मंगल - अर्हत्, सिद्ध और साधु हैं, एक 'धर्म' इससे जुड़ गया। वास्तव में धर्म ही मंगल है।ये चार मंगल हैं। अर्हत् इसलिए मंगल है वह वितराग है। सिद्ध सर्वथा आत्मा है, केवल आत्मा। आत्मा से बढ़कर कोई मंगल हो नहीं सकता। साधु को भी मंगल माना गया है। साध का मंगल अध्यात्म का मंगल है। धर्म मंगल है। धर्म आत्मा का स्वरुप है। आत्मा को छोड़कर कोई मंगल नहीं है। जैन आचार शास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक मात्र मंगल है आत्मा। इसी आधार पर हमें प्रयोग करना चाहिए। कोई भी कार्य करना, मुहूर्त करना है, आत्मा में रमण करना है तो वह मंगल होगा। मंगल पाठ में निश्चय और व्यवहार दोनों सूत्र हैं। सदैव यह गूंजता रहेगा तो जीवन सुखी बनेगा। धृति सम्पत्रोऽह स्याम् शक्ति सम्पत्रोऽहं स्थान पी सम्पयो ही सम्पत्रोऽहं स्याम् शान्ति सम्माजस्थान नन्दी सम्पन्नाह स्याम् HSushee “सामायिक की निष्पत्ति है ध्यान और ध्यान की निष्पत्ति है सामायिक" - 'आध्यात्म का प्रथम सोपान - सामायिक' आचार्यश्री महाप्रज्ञजी Jaiha asala PN बन अहम स्वीकार्या मजुजै नित्यं, वाग्गुप्तिर्हितकारिणी। व त्तव्यं नानपेक्षायां सूक्तं कल्याणकारकम्॥ बने अहम मनुष्यों को सता हित करने वाली सामाप्ति स्तीकार करनी चाहिए। ाि अपेक्षा नाहीं सोलना चाहिए यह सूदगल वारल्याणकारी है।।

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