Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 35
________________ म सामायिक और आसन : परमेष्ठी के पांच स्थान हैंअरहन्त का स्थान -सिर का मध्य भाग सिद्ध का स्थान -ललाट का मध्य भाग आचार्य का स्थान -कण्ठ मध्य भाग उपाध्याय का स्थान -हृदय साधु का स्थान -नाभि (जपयोग करते समय प्रत्येक अक्षर के उच्चारण के साथ मन उस उस स्थान पर केन्द्रित रहे) २. ध्यानयोग का प्रयोग - समय दस मिनट। रीढ़ की हड्डी एवं गर्दन को सीधा रखते हुए बिना किसी अकड़न के श्वाँस को लम्बा, गहरा और मंद, आसानी से जितना लिया जा सके लें एवं उसी रुप में छोड़ें। श्वाँस लेते समय मन को नासाग्र पर टिकाएं। आतेजाते प्रत्येक श्वास को देखें साथ-साथ यह भी अनुभव करें कि श्वास लेते समय पेट फूलता है और छोड़ते समय सिकुड़ता है। सामायिक आलोचना पाठ : नौवें सामायिक व्रत में जो कोई अतिचार (दोष) लगा हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूँ/करती हूँ। १. मन की सावध प्रवृत्ति की हो। २. वचन की सावध प्रवृत्ति की हो। ३. शरीर का सावध प्रवृत्ति की हो। ४. सामायिक के नियमों का पूरा पालन न किया हो। ५. अवधि से पहले सामायिक को पूरा किया हो। तस्स मिच्छा मि डुक्कडं-इनसे लगे मेरे पाप मिथ्या हो, निष्फल हो। क्या गृहस्थ सामायिक में आसन कर सकते हैं? यह एक प्रश्न है। मुनि जब साधु-जीवन में भी आसन कर सकते हैं तो गृहस्थ के सामायिक में आसन करने में भी कोई बाधा नहीं है लेकिन उनका लक्ष्य विशुद्ध आध्यात्मिक होना चाहिए। आसन की प्रक्रिया आत्मशुद्धि के लिए ही उपयोगी है। कैसे? आसन कायक्लेश है।कायक्लेश निर्जरा है और निर्जरा का अर्थ हैआत्मशुद्धि। कुछ आसन अव्यवहारिक होते हैं। उन्हें करते समय विवेक रखना चाहिए। एक बात और - स्वास्थ्य लाभ आसन का प्रासंगिक और गौण फल है। ध्यान रहे, गौण को मुख्य बनाने की भूल न हो। - आचार्य तुलसी गुरू तुलसी की सामायिक अभिनव प्रभावित हैसब जन-जन करते हैं आपको नमन... हने अहम सेवाधर्मो महाधर्मः, क्रियले येन भूस्पृशा। सहिष्णुभावतः नित्यं स याति गुणपत्राताम् ।। सेवाधर्म महाना-पास है। जो मनुष्य सहिष्णु भाव से सदा सेवा कासराहगण-पात्र बन जाता है।

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