Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 16
________________ ६. निदान - सामायिक का कोई भौतिक फल चाहना, जैसे अमुक पदार्थ या सांसारिक सुख के लिए सामायिक का फल बेच डालना। संशय - सामायिक करते करते इतने दिन हो गये फिर भी कुछ भी नहीं मिला इत्यादि सामायिक के फल के संबंध में संशय करना। ८. रोष-सामायिक में क्रोध, मान, माया, लोभ करना। लड़-झगड़ कर या रुठकर सामायिक करना। ९. अविनय-सामायिक के प्रति आदर भाव न रखना। १०. अबहुमान-बिना श्रद्धा अनादरपूर्वक या दबाव से सामायिक करना। वचन के दस दोष : कुवचन - सामायिक में कुत्सित, गंदे वचन बोलना सहसाकार - बिना विचारे सहसा हानिकारक वचन बोलना। स्वच्छन्द -काम-वृद्धि करने वाले गंदे गीत गाना, गंदी बातें करना। ४. संक्षेप-सामायिक के पाठ को संक्षेप में बोलना। ५. कलह-कलह पैदा करने वाले वचन बोलना। ६. विकथा- बिना किसी अच्छे उद्देश्य के मनोरंजन की दृष्टि से स्त्री कथा, भक्तकथा, राजकथा, देशकथा आदि करना। ७. हास्य-सामायिक में हंसी-मजाक करना। अशुद्ध-सामायिक का पाठ जल्दी-जल्दी एवं अशुद्ध बोलना। ९. निरपेक्ष - सामायिक में सिद्धांत की उपेक्षा करके वचन बोलना अथवा बिना किसी सावधानी के वचन बोलना। १०. मुन्मन-सामायिक के पाठ का स्पष्ट उच्चारण न करना। काया के बारह दोष १. कुआसन - सामायिक में पैर चढ़ाकर अभिमान से बैठना। २. चलासन -स्थिर आसन से न बैठकर बार-बार आसन बदलना। ३. चल दृष्टि-दृष्टि स्थिर न रखकर, बार बार इधर उधर देखना। ४. सावद्य क्रिया - शरीर से स्वयं सावध कार्य (पाप युक्त क्रिया) करना या दूसरों को करने के लिए संकेत करना। घर की रखवाली करना। ५. आलम्बन-विशेष कारण के बिना दीवार आदि का सहारा लेना। आकुञ्चन प्रसारण - बिना किसी विशेष प्रयोजन के हाथ पैरों को सिकोड़ना और फैलाना। ७. आलस्य-सामायिक में बैठे हुए आलस्य करना, अंगड़ाई लेना। ८. मोड़न-हाथ पैर की अंगुलियां चटकाना, कटका निकालना। मल - शरीर का मैल उतारना। १०. विमासन-शोक ग्रस्त की तरह बैठना या बिना पूंजे शरीर खुजलाना या रात्रि में इधर-उधर आना-जाना। ११. निंद्रा-झपकी लेना एवं नींद लेना। १२. वैयावृत्त्य - निष्कारण आराम के लिए दूसरों से सेवा लेना। स्वाध्याय करते हुए इधर उधर घूमना या हिलना डुलना अथवा शीत आदि के कारण कांपना। आचार्य महाप्रज्ञ कितने सहजता से समझाते हैं - हम विचार करें सामायिक करने वाला क्या छोड़ता है? पाप, आश्रव - प्राणतिपात आदि। "आश्रव" जैन तत्वदर्शन का पारिभाषिक शब्द है। आश्रव यानी कर्म परमाणुओं के आने का रस्ता। पांच आश्रव है मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमोद, कषाय और योग। क्रोध, मान, माया, लोभ और राग द्वेष छोड़ने की बात समझ में आयेगी तो क्रोध को उपशांत करने की, अहंकार शांत करने की साधना करना। माया और लोभ मिटाने की सुन्दर साधना का नाम है सामायिक। सामायिक के लिए भावक्रिया का अभ्यास आवश्यक है। इसमें वहीं सफल हो सकता है जो प्रतिक्रिया से मुक्त होने का अभ्यास करता है, उसके लिए हमें तटस्थ रहना चाहिए। सामायिक शब्द का प्राचीन अर्थो में एक अर्थ है, समय में जीना। सामायिक में भविष्य की कल्पना और भूतकाल की स्मृतियों से मुक्त होकर वर्तमान में जीना। सामायिक साधना में एक बात का आवश्यक ध्यान रखना चाहिए। प्रयोग, आत्मपरिक्षण और निरीक्षण यह सब सामायिक में महत्त्वपूर्ण है। बनें अहम् समता नाता अक्तिः, सर्वेः सार्क सुमिाता। स एव पुरुषः श्रेष्ठः, श्रेष्ठो यो हि स्तभातालः ।। सही पुरुष पोष्ट है, जो स्वभाव से श्रेष्ठ है अर्थात् जिसमें समता, मनाता, अति तथा सबके साथ मिला है। ११

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