Book Title: Bane Arham
Author(s): Alka Sankhla
Publisher: Dipchand Sankhla

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Page 20
________________ मुद्रा On वितराग मुद्रा : बायीं हथेली नीचे और दायीं हथेली ऊपर रखकर, दोनों हाथलियों को नाभी के नीचे स्थापित करें। ज्ञानमुद्रा : दोनों हाथों को घुटने पर टिकाना है। अंगूठे और तर्जनी के Airce अग्रभाग को मिलाएं शेष तीन अंगुलियां सीधी रहे। ध्यानमुद्रा : आँखों को बिना दबाए, कोमलता से बंद करें। ध्वनि : महाप्राण ध्वनि, अर्हम्, ॐ का उच्चारण दीर्घ, मध्यम एवं मानसिक रुप से करें। मंत्राक्षरों का प्रभाव मंत्र शक्ति के बारे में प्रायः हम यह सुनते और पढ़ते हैं कि अमुक मंत्र के प्रभाव से बेड़ियाँ टूट पड़ी, ताले खुल गये, असाध्य रोग मिट गये। कुछ समय पूर्व तक सूक्ष्म-ध्वनि तरंगों का कर्तृत्व धार्मिक धरातल तक ही सीमित था किन्तु आज वह सूक्ष्म ध्वनि (मन और प्राणों की ध्वनि) वैज्ञानिक तत्व बन गयी है। आज अनेक शोध संस्थान, यंत्रों के द्वारा इस परीक्षण में लगे हैं कि किस शब्द ध्वनि का किस अवयव पर कितने समय के बाद क्या असर होता है। वर्तमान चल रहे चिकित्सा क्षेत्र में कुछ प्रयोगो ने यह सिद्ध कर दिया है कि अत्यंत गंभीर एवं असाध्य रोग 'मंत्र दीक्षा' के द्वारा मिटाए जा सकते हैं। धर्म के क्षेत्र में आने वाला साधना करने वाला हर व्यक्ति जाप करता है। सनातनी गायत्री मंत्र, मुसलमान - अल्ला, बौद्ध - ओम और जैन 'नमस्कार मंत्र' प्रत्येक धर्म परंपरा का अपना मंत्र है। मंत्रशास्त्र पर सेंकड़ों ग्रंथ हैं। बीजाक्षर संबंधित हजारों मंत्र हैं। अच्छे शब्दों का प्रभाव अच्छा और बुरे शब्दों का प्रभाव बुरा होता है। शब्द योजना में गड़बड़ होती है तो अनर्थ होता है इसलिए कहा गया है || अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूल मनौषधम् ॥ अयोग्यः पुरूषो नास्ति, योजक स्तत्र दूर्लभः ऐसा कोई अक्षर नहीं है जो मंत्र न हो, ऐसा कोई मूल नहीं है, जो औषधि न हो। ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो योग्य न हो। प्रत्येक आदमी में योग्यता होती है। उपयोग करने वाला दूर्लभ है।कुछ शब्द को अत्यंत प्रभावी जैसे 'ओम' सभी धर्मों में उसे मान्यता देते हैं। D मंत्र प्रयोग मंत्र उपयोग की पूर्व तैयारी ध्यानासन: जिस आसन में आप लम्बे समय तक सुविधापूर्वक TAA स्थिरता से बैठ सकें, उस ध्यानासन का चुनाव करें। जैसे पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन बने अहम मनः प्रसझतामेति, सिद्धा चेत् समता भवेत। विना सगत्तसिद्भया त. मनोविषादगरनुते।। कायोत्सर्ग : शरीर को स्थिर-शिथिल एवं तनावमुक्त करें। मेरुदण्ड और गर्दन को सीधा रखें, अकड़न न हो।मांसपेशियों को ढीला छोड़ें, शरीर की पकड़ को छोड़ें। कायगुप्ति का अभ्यास करें। प्रतिमा की भाँति शरीर को स्थिर रखें। हलन चलन न करें। पूरी स्थिरता। चित्त को क्रमशः पैर से सिर तक प्रत्येक भाग पर ले जाएं।पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें। शिथिलता का सुझाव दें और शिथिलता का अनुभव करें। प्रत्येक माँसपेशिय और स्नायु शिथिल हो जाएं। पूरे शरीर की शिथिलता के साथ गहरी एकाग्रता एवं पूरी जागरुकता। पूरे मंत्र जप के काल तक कायोत्सर्ग की मुद्रा बनी रहे, शरीर अधिक से अधिक निश्चित रखने का अभ्यास करें। मंत्रजाप : अब विशेष मंत्र का जाप विशेष चैतन्य केन्द्र पर चित्त को टिकाकर १० मिनट तक उच्च, मध्यम एवं मानसिक उच्चारण के साथ करें। साथ दी गई अनुप्रेक्षा की भावना करें। समय : कम से कम दस मिनट तक सुबह अथवा शाम उक्त विधि से दिए गए मंत्रों का जाप करें। बर्ने अध्य RTI क्ष समता का साध लिया जाए तो मन प्रसस्ता को प्राप्त हो जाता है। समता की सिद्धि के बिना मन में विधान अयन होता है।

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