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१. श्वाँस के साथ जाप किया जाता है
श्वाँस और मन का गहरा सम्बन्ध है। सत्य की खोज नियमों की खोज यह व्यक्ति की जिज्ञासा है, प्रकृति है। श्वाँस का सम्बन्ध प्राण से है, प्राण का सम्बन्ध शुद्ध प्राण से है। श्वाँस एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण माध्यम है। श्वाँस एक ऐसा सेतु है जिसके द्वारा नाड़ी संस्थान मन, प्राणशक्ति तक पहुँच सकते हैं। श्वाँस को छोटा न समझें, यह इतना महत्त्वपूर्ण है, इसलिए किसी ने कहा भी है, श्वास को देखा तो जीना सीखा।
श्वाँस केन्द्र बिंदु है, नींव का पत्थर है, श्वाँस सबकुछ है। 'मन' को हम पकड़ नहीं पाते, स्वभाव को बदलना चाहते हैं, नहीं बदल पाते। श्वास को पकड़ो, आलंबन बनाओ देखों चंचलता मिटाने का रास्ता मिल जायेगा। समता साधने में, सामायिक की आराधना में 'स्वर' श्वाँस ही महत्त्पूर्ण है। संतुलन साधने में, शांतिपूर्ण जीवन जीने में, अध्यात्म में, विकास करने में, स्वभाव बदलने में, जगत का स्वरुप समझने में, ममता और अहंकार का विसर्जन करने में श्वाँस का उपयोग करना जानेंगे तो सहजता आयेगी ।
श्वास-प्रश्वास की क्रिया समझना जरुरी है। 'प्राणायाम' को समझना जरुरी है। प्राणायाम का नियमित अभ्यास करना और श्वाँस पर भी ध्यान देना चाहिए। 'नमस्कार' महामंत्र का जाप श्वास-प्रश्वास की गति के साथ करने से एकाग्रता अच्छी होती है। श्वाँस के साथ महामंत्र जाप मन में जपें
णमो अरहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
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श्वाँस लेते समय श्वाँस छोड़ते समय
श्वाँस लेते समय
श्वाँस छोड़ते समय
श्वाँस लेते समय
श्वाँस छोड़ते समय
इस विधि से नमस्कार महामंत्र करने से मन शांत होता है, एकाग्रता भी अच्छी होती है। माला भी इसी प्रकार मन में श्वाँस के जाप साथ फेरने से पूरी माला में ३२४ श्वाँस - प्रश्वास का परावर्तन होता है। योगशास्त्रीय गणना के अनुसार एक व्यक्ति एक दिन में इक्कीस हजार, छह सौ श्वास-प्रश्वास लेता है।
बने अर्हम्
यदि प्रतीतिराव्या, सत्य निष्ठो भवेत् तदा । विना सत्येन लोकेरिगन्, विश्वासो नहि संभवेत् ॥
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नमस्कार महामंत्र चैतन्य - केन्द्रों पर
चैतन्य - केन्द्रों पर भी नवकार मंत्र का जाप करते हैं। रक्षा कवच के रूप में संपूर्ण शरीर की रक्षा के लिए नवकार मंत्र का जाप नवपदध्यान अष्ट दल कमल में किया जाता है। नौ ग्रह हमारे शरीर में है, इसके साथ भी जाप करते हैं। नवकार मंत्र का जाप रंग और स्थान
स्थान
रंग श्वेत
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केन्द्र
- मस्तक
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं
- भृकुटि
- लाल
- ज्ञान केन्द्र - दर्शन केन्द्र णमो आयरियाण - कण्ठ -पीला - विशुद्ध केन्द्र णमो उवज्झायाणं - हृदय हरा -आनन्द केन्द्र - नाभि णमो लोए सव्व साहूणं - नीला - शक्ति केन्द्र नमस्कार मंत्र के साथ रंगों का समायोजन है। हमारा शरीर भी पौदगलिक है। पुदगल के चार लक्षण है- वर्ण, गंध, रस और स्पर्श । वर्ण (रंग) से हमारे शरीर का बहुत निकट का संबंध है। जैसे नीला रंग कम होता है तो क्रोध अधिक आता है, लाल रंग की कमी होती है तो आलस्य, जड़ता पनपती है। इसी आधार पर हम नमस्कार महामंत्र की साधना कैसे कर रहे है, यह समझना जरूरी है। लेश्या ध्यान यही कहता है जैसा भाव वैसा रंग जैसा रंग बनेगा वैसा भाग्य बन जाता है।
" णमो अरिहन्ताणं"
" णमो सिद्धाणं"
" णमो आयरियाणं
" णमो उवज्झायाणं"
" णमो लोए सव्वसाहूणं" कषायों को शांत करता है।
बनें अर्हम्
"
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ज्ञान केन्द्र पर श्वेत रंग का ध्यान करने से हमारी आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है।
दर्शन केन्द्र पर लाल वर्ण का ध्यान करने से आंतरिक दृष्टि जागृत होती हैं।
विशुद्धि केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान करने से मन सक्रिय बनता है।
आनन्द केन्द्र पर हरे रंग का ध्यान करने से विषापहार होता है, हरा रंग ठंडा होता है।
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शान्ति केन्द्र पर नीले रंग का ध्यान शांति प्रदान करता है।
यदि विश्वास प्राप्त करना है तो सत्यनिष्ठ बनो। इस लोक में सत्य के बिना विश्वास संभव नहीं है।
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