________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अखातृस
३८
अगइयत्ता अखोनूस akhiritus -यु) जंगलो करनव; करम- अगः agah-सं. पु. (3) पहाड़, पर्वत-हिं०
कल्ला, गोभी भेद ( wild cabbare.)। (Mountain) (२) एक वृक्ष । (३) असतह akhlah एक कंटकयुक बूटी हैं जो पत्थल ( ४ ) रूप (५) सूर्य । पहाड़ अाग्नेय बालिश्त के बराबर होती है। पुप्प नीले एवं
व सौम्य गुण भेद से दो प्रकार के होते हैं । स्वेत और पत्ते कोर होते हैं।
इनमें विन्ध्य पर्वत श्राग्नेय गुण युक्र और
हिमालय सौम्य गुण यक्क है। अाग्नेय गण अरुलात akhlat -अ (व.) व.)खिल्त (ए)
विशिष्ट पहाड़ों में होने वाली औषधियाँ अग्नि व०) यूनानी वैद्यक के मतानुसार खिल्त ( दोप)
गुण विशिष्ट होती हैं, और सोमगुण विशिष्ट चार हैं, यथा-सौदा (वात ) सफ़रा (पित्त)
पर्बतों में होने वाली प्रौषधियाँ मोमगुण विशिष्ट बाम (करू, श्लेन्मा) और जन (रक)
होती हैं। भा००। शारीरिक--द्रव (तरी) अर्थात् शरीर की वह चारों रतूबतें ( तरी, स्निग्धता) जो भोजन के अगई agai-हि. संज्ञा प० ( ? ) चलता की प्रथान परिवर्तन द्वारा उत्पन्न होती है । ह्यनर्स
जाति का एक पेड़ जो अवध, बंगाल, मध्यदेश (Humours) इ01
और जदास में बहुतायत से होता है। इसकी
लकड़ी भीतर सफेदी लिए हए लाल होती है। अख्लीलल मलिक akhillul-malika-4)
जहाज़ों और मकानों में लगती है। इसका अपभ्र० इकलीलुल्मलिक, ताज बादशाही।
कोयला भी बहुत अच्छा होता है। इसके पत्ते श्ररुशम akhsham - अ। खश्म रोगी, घ्राणज
दो दो फुट लम्बे होते हैं और पत्तल का काम संगी। वह रोगी जिसकी घ्राण राक्रि नाश हो गई भी देते हैं। इसकी कली और कच्चे फलों की हो अर्था 1.जो वस्तुओं के गन्ध को न मालूम
तरकारी बनती है। कर सके । अनासटिक (Anosmatic.)
अगज agaja-हि० संज्ञा पु. पवन से उत्पन्न -इं)।
होने वाला | शिलाजीत । अख स. akhsi-० गोबर, गृ । ड( Duns)
अगजः aga jah-सं० ए० ( 1 ) पाई धनियाँ, फीसेज ( Feeces) इं०।
नैपाली धयियाँ, तुम्बुरु-हिं) । तुम्बुरुः, आर्द्र अलसामुलऐ.न kasamulain- अ) पलकों
धान्यकम्-सं० । काँचधनम्-वं० । Execarin के किनारों के मिलने का स्थान |
aga]]ocha ( २ ) बन्दकः-सं० बन्दा अख सीनह kbsinah-जङ्गली राई(Brassic :
बाँदा-हिं० । बाँदड़ा । बरगाछा--बं० A paraJunct, lilld.)।
sitoplant ( Epidendrum Tesseअगaga-हिं० संज्ञा पु० [सं० अङ्ग ] मूढ़ अन । Intum)। जान । अंग, शरीर,-हिं. सं. पु० [सं०
अगजन aga jana--पं० झवानी बूटी । मे० मो। ग्रगारी ] ऊख के सिरे पर का पतला भाग जिसमें गा बहुत पास २ होती हैं, और रस अगजम् aga jam-सं• क्ली. शिलाजतुः, शिलाफीका होता है । अगौरा | अगौरी । वि० [. ।जीत ( Bitiamen ) र० मा० । अज्ञ] मूढ़, अनजान, अनाड़ी। वि० सं० (१) अगट agata-हिं. संज्ञा पु० [देश] चिक वा न चलने वाला । अचर । स्थावर । (२) टेढ़ा मांस बेचने वाले की दुकान | चलने वाला।
अगड़धत्ता agaya.rlhattā--हिं. प. (१)द्रोण अगंड ganda-हि० सं० पु० (सं०) धड़ से। पुष्पी, गूमा । (२)हिं० वि० [अग्रोद्धत, बढ़ा जिसके हाथ पैर कट गए हों।
नदा ] लम्बा तईगा । ऊँचा (श्रेष्ठ) बढ़ा चढ़ा
For Private and Personal Use Only