Book Title: Atmashuddhipayog Anuwad
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir તેજસ્વી તણખા. ॥ ७७॥ सर्व साधनसंसाध्या, शुद्धोपयोग साध्यता ॥१३॥ आत्मशुद्धोपयोगस्तु, सर्वयोगशिरोमणिः ॥२३॥ भवोऽशुद्धोपयोगेन, मुक्तिः शुद्धोपयोगतः ॥ २८ ॥ बहिर्मुखोपयोगेन, जन्मदुःख परम्परा ॥३०॥ भोगे रोगश्च दुःख श्च, जन्म दुःखपरम्परा ॥३३॥ वपुरिन्द्रियभोगेन, सुखं तु दुःखमेव च ।।३४ ।। मुक्तिरसंख्ययोगः ॥४९॥ कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः ॥५७॥ शुभः शुद्धोपयोगश्च स्वर्गदो मोक्षदः ॥५९॥ शुद्धोपयोगतो मुक्तिः , सर्वदर्शनधर्मिणाम् आत्मोपयोगसामर्थ्यादात्माऽनन्तबली भवेत्। ॥१०६ ॥ रागद्वेषनिरोधाऽऽख्यो, योगो मोक्षप्रदायकः ॥१०९ ॥ असङ्ख्या मोक्षपन्थानः, परब्रह्म प्रदायकाः ॥११६ ॥ वने निवासिनां दुःखं जायते ज्ञानमन्तरा ॥१२५ ॥ चक्रिणां न सुखावाप्ति, र्धनसत्तादिभोगतः ॥१२७॥ आत्मन्येव सुखं सत्यम् ॥१२७॥ आत्मानमन्तराऽन्यत्र मुढा भ्रमन्ति शर्मणे ॥१२८ ॥ अनादिःकर्मयुक्तोऽपि, मुक्तः स्यात् कर्मनाशतः ॥१३६ ॥ सतां सङ्गं तु मा मुञ्च, व्यकतशुद्धोपयोगिनाम् ॥१९०।। सतां सङ्गः सदा कार्य..... ॥१९१ ॥ सुखं भोगेषु नो किञ्चित्, स्वात्माऽस्ति सुखसागरः॥१९२॥ जीवनं स्वात्मभावेन, मृत्युर्हि मोहवृत्तितः ॥१९६ ॥ शुद्धोपयोगतो जाग्रद् भव ॥१९९॥ For Private And Personal Use Only

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