Book Title: Atmashuddhipayog Anuwad
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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मा मुह्य जडभोगेसु.........
॥ २५७॥ भोगाद्रोगादि दुःखानां पारम्पर्य प्रजायते ॥२५८ ॥ भोगजन्यसुखं दुःखमेव......
॥२५९ ॥ नाऽस्ति शर्मं पुत्रायैः ......... ,
॥२६२॥ मैथने सुखं नाऽस्ति.........
॥२६३॥ बाह्यानन्दाय यद्यच्च क्रियते तत्तु दुःखकृत् ॥ २६८॥ आदेहमर्हन्तो विश्वजीवोपकारिणः
॥३०४॥ स्वोपयोगेन धर्मोऽस्ति, बन्धोऽस्ति मोहभावतः ॥३०५॥ कर्मबन्धः कषायेण, मुक्तिः साम्येन देहिनाम् ॥ ३०८ ॥ रागद्वेषपरिणाम एव संसारकारणम्
॥३०९ ॥ सम्प्रदायादिभेदस्थनृणां मुक्तिर्हि साम्यतः ।।३७०॥ बन्धो हि मोहभावेन......
॥३७६ ॥ नरा जीवति धर्मार्थं जीवाजीवसहायतः ॥३८१॥ आत्मज्ञानं विना सेवाकारिणः पापबन्धकाः ॥३९१ ॥ आत्मानन्दस्य वाञ्छा चेत् कामवृत्तिं निवारय ॥४२१ ॥ आत्मशुद्ध्यर्थं जैनधर्मं प्रसाधय
॥४३१॥ सर्वसारस्य सारोऽयमात्मा तत्त्वमसि स्वयम् ॥४५७॥ ........कालस्य कालजित्त्वहम्
॥ ४५७॥ सर्वं योगादिसारोऽस्ति संसाध्या वीतरागता ॥४५८ ॥ मनोवाक्कायपावित्र्यादात्मनः पूर्णशुद्धता ॥४६२॥ जायते न कदा मुक्तिराविर्भूतगुणै विना ॥४६५ ॥ साधय स्वात्मनः शुद्धिः वारय मोहवासनाम् ॥४८७॥ जीव शुद्धोपयोगेन म्रियस्व मोहभावतः ॥४८७॥ सम्यग्दृष्ट्या प्रविज्ञाय स्वात्मधर्मे रतिं कुरु ॥४९३॥ वैषयिकरतिं त्यक्वा शुद्धात्मनि रतिं कुरु ॥४९४ ॥ मनोवाक्कायजान् दोषान् वारय
॥४९६ ॥ शुभाशुभविपाकेषु हर्षशोकं च संत्यज ॥४९७॥ दासोऽहं सर्व साधूनां, साध्वीनां च विशेषतः ॥५०३ ।। दोषा भवाय मोक्षाय गुणाः,
॥५०६॥
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