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क्रमांक
विषय
२०. निश्चय - व्यवहार सम्यक्त्व का स्वरूप
२१.
सर्व गुणों में सार दर्शन रत्न को भावपूर्वक धारण करने की प्रेरणा
२२. केवल श्रद्धानदान के सम्यक्त्व होता है
२३. दर्शनादि में प्रसक्त और गणधरों के गुणवादी वंदनीय हैं २४. यथाजात रूप को मत्सरभाव से नहीं मानने वाला संयमयुक्त भी मिथ्याद ष्टि है
२५. अमरवंदित शील सहित रूप को देखकर गारव करने वाले सम्यक्त्व विवर्जित हैं
२६. भावसंयम रहित वस्त्रविहीन की भी ग हस्थ असंयमी के
समान अवन्द्यता
२७. देहादि वंदनीय नहीं, गुण ही वंदनीय हैं
२४. तपशील व ब्रह्मचर्यचारी की सम्यक्त्वयुक्त शुद्ध भाव से वंदना करने पर ही सिद्धिगमन होता है
२१. तीर्थंकर परमदेव भी वंदनीय होते हैं
३०. संयम सहित ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप गुणों से जिनशासन में मोक्ष है
३१. ज्ञान व सम्यक्त्व से चारित्र और चारित्र से निर्वाण होता है ३२. ज्ञान, दर्शन व सम्यक्त्व सहित चारित्र, तप से ही जीव निःसन्देह सिद्ध होता है
३३- ३४. सम्यक्त्व रत्न से कल्याण परम्परापूर्वक अक्षय सुख सहित मोक्ष की प्राप्ति होती है अतः यह पूज्य है।
३५. सम्यक्त्व से केवलज्ञान हुए पीछे विहार काल तक जिनेन्द्र की स्थावर प्रतिमा है
३६. बारह प्रकार के तप से कर्म, नोकर्म का नाश कर अनुत्तर निर्वाण की प्राप्ति होती है
2. विषय वस्तु
१-५२
3. गाथा चयन
4. सूक्ति प्रकाश
१-५३-५५
१-५६
5. गाथा चित्रावली
6. अंतिम सूक्ति चित्र
दर्शन पा० समाप्त
१-४
पष्ठ
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