Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 27
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth को उत्तम निवास के हेतु शुद्ध रजत से निर्मित पचास योजन विस्तृत वैताढ्य पर्वत तथा अनेक विद्याओं के दान देने का निरूपण किया गया है। चतुर्थ उद्देशक में श्रेयांस के दान का, भगवान् के केवलज्ञानोत्पत्ति का उपदेश एवं भरत-बाहुबली के युद्ध का वर्णन है। भरत अपनी पराजय से क्षुभित होकर बाहुबली पर चक्ररत्न फेंकते हैं, परन्तु वह चक्र बाहुबली तक पहुँच कर ज्योंही भरत की ओर मुड़ा तो बाहुबली के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ। एक वर्ष तक कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा कर बाहुबली अन्त में तपोबल से केवलज्ञान प्राप्त करते है तथा मोक्ष पद के अधिकारी बनते हैं। प्रस्तुत उद्देशक में भरत के वैभव का वर्णन करते हुए ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति का हेतु निर्दिष्ट किया गया है। अन्त में भगवान् ऋषभदेव के अष्टापद पर निर्वाण प्राप्त करने का और भरत चक्रवर्ती के राज्य-लक्ष्मी का त्याग कर अव्याबाध पर सुख प्राप्त करने का संक्षिप्त निरूपण किया गया है। इस काव्य में भगवान् ऋषभदेव के पंचमुष्टि लोच का निरूपण किया गया है। ३. तिलोयपण्णत्ति उक्त ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें तीर्थङ्कर आदि के चरित्र-तथ्यों का प्राचीन संकलन प्राकृत भाषा में किया गया है। इसके चौथे महाधिकार में-तीर्थङ्कर किस स्वर्ग से च्यवकर आये, नगरी व माता-पिता का नाम, जन्म तिथि, नक्षत्र, वंश, तीर्थङ्करों का अन्तराल, आयु, कुमारकाल, शरीर की ऊंचाई, वर्ण, राज्यकाल, वैराग्य का निमित्त, चिन्ह, दीक्षातिथि, नक्षत्र, दीक्षा का उद्यान, वृक्ष, प्राथमिक तप, दीक्षा परिवार, पारणा, दान में पञ्चाश्चर्य, छद्मस्थ काल, केवलज्ञान की तिथि, नक्षत्र, स्थान, केवलज्ञान के बाद अन्तरिक्ष हो जाना, केवलज्ञान के समय इन्द्रादि के कार्य, समवसरण का सांगोपांग वर्णन, यक्षयक्षिणी, केवलज्ञान गणधर संख्या, ऋषि संख्या, पूर्वधर शिक्षक, अवधिज्ञानी, केवलज्ञानी, विक्रिया ऋद्धिधारी, वादी आदि की संख्या, आर्यिकाओं की संख्या, श्रावक-श्राविकाओं की संख्या, निर्वाणतिथि, नक्षत्र, स्थान का नाम आदि प्रमुख तथ्यों का विधिवत् संग्रह है। ४. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं५ ___ महापुरुषों के चरित्र का वर्णन करने वाले उपलब्ध ग्रन्थों में उक्त ग्रन्थ सर्वप्रथम माना जाता है। यह ग्रन्थ आचार्य शीलाङ्क द्वारा रचित है इसमें वर्तमान अवसर्पिणी के चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव का चरित्र-चित्रण किया गया है। जैनागम में ऐसे महापुरुषों को 'उत्तमपुरुष' या 'शलाकापुरुष' भी कहते हैं। श्रीमज्जिनसेनाचार्य तथा श्री हेमचन्द्राचार्य ने शलाकापुरुषों की संख्या त्रेसठ दी है। नौ वासुदेवों के शत्रु नौ प्रतिवासुदेवों की संख्या चौपन में जोड़ने से त्रेसठ की संख्या बनती है। श्री भद्रेश्वरसूरि ने अपनी कहावली में नौ नारदों की संख्या को जोड़कर शलाकापुरुषों की संख्या बहत्तर दी है।४६ शीलांकीय प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृत भाषा में निबद्ध है। मात्र ‘विबुधानन्द नाटक' संस्कृत में है, उसमें भी कहीं-कहीं अपभ्रंश सुभाषित आते हैं। संपूर्ण ग्रन्थ गद्य-पद्यमय होने पर भी कहीं-कहीं पद्यगन्धी गद्य भी प्रतीत होता है। ४४ ४५ यतिवृषभाचार्य विरचित, प्रकाशकः जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, भाग १ सन् १९४३, भाग २ सन् १९५१ । आचार्य शीलाङ्क विरचित, सम्पादक- पंडित अमृतलाल मोहनलाल भोजक, प्रकाशक- प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी ५, सन् चवीस जिणा, वारस चक्की, णव पडिहरी, णव सरामा। हरिणो, चक्किहरिसु य केसु णव नारया होति। उड्ढगई चिय जिण रामणारया जंतऽहोगई चेय। सणियाणा चिय पण्डिहरि- हरिणो दुहुवो वि चक्कि त्ति। न य सम्मत्त सलायारहिया नियमेणिमेजओ तेण। होति सलाया पुरिसा बहत्तरी.... । - कहावली (अमुद्रित) -332354 - Rushabhdev : Ek Parishilan

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