Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 34
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-विमलसूरि विरचित । (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-वज्रसेनविरचित । (४) त्रिषष्टिशलाकापंचाशिका-कल्याणविजयजी के शिष्य द्वारा विरचित। ५० पद्यों में ग्रथित ग्रन्थ-रत्न । (५) त्रिषष्टिशलाकापुरुष विचार-अज्ञात ।६३ गाथाओं में ग्रथित।। (६) तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारु (त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालंकार) या महापुराण- इसमें वेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र हैं। इसके दो खण्ड हैं- आदिपुराण और उत्तरपुराण । आदिपुराण में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव का संक्षिप्त वर्णन है। इसके कर्ता महाकवि पुष्पदन्त हैं। यह ग्रन्थ आधुनिक पद्धति से सुसम्पादित एवं प्रकाशित है। ८. महापुराण प्रस्तुत पुराण ग्रन्थ के रचयिता मुनि मल्लिषेण हैं। इस ग्रन्थ का रचनाकाल शक सं०९६९ (वि० ११०४) ज्येष्ठ सुदी ५ दिया गया है। अतः ग्रन्थकार का समय विक्रम की ग्यारहवीं के अन्त में और १२वीं सदी के प्रारम्भ में माना गया है। ये एक महान् मठपति थे तथा कवि होने के साथ-साथ बड़े मंत्रवादी थे। इन्होंने उक्त ग्रन्थ की रचना धारवाड़ जिले के अन्तर्गत मुलगुन्द में की थी। इसमें त्रेसठ शलाका पुरुषों की संक्षिप्त कथा हैं अतः उक्त ग्रन्थ का अपर नाम त्रिषष्टिमहापुराण' या 'त्रिषष्टि-शलाकापुराण भी प्रचलित है। इस ग्रन्थ का परिमाण दो हजार श्लोकों का है। रचना अति सुन्दर एवं प्रासाद गुण से अलंकृत है। ९. पुराणसार इसमें चौबीस तीर्थङ्करों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यह संक्षिप्त रचनाओं में प्राचीन रचना है। इसके रचयिता लाट बागड़संघ और बलाकागण के आचार्यश्री नन्दी के शिष्य मुनि श्रीचन्द्र हैं। इन्होंने इस ग्रन्थ की रचना वि. सं. १०८० में समाप्त की थी। इनकी अन्य कृतियों में महाकवि पुष्पदन्त के महापुराण पर टिप्पण तथा शिवकोटि की मूलाराधना पर टिप्पण हैं। इन ग्रन्थों के पीछे प्रशस्ति दी गई है जिससे ज्ञात होता है, कि ये सब ग्रन्थ प्रसिद्ध परमार नरेश भोजदेव के समय में धारा नगरी में लिखे गये हैं। १०. पुराणसार संग्रह प्रस्तुत ग्रन्थ में आदिनाथ, चन्द्रप्रभ, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर इन छह चरित्रों का संकलन किया गया है। इसके २७ सर्गों में से पाँच सर्गों में आदिनाथ के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके रचयिता दामनन्दी आचार्य हैं ऐसा अनेक सर्गों के अन्त में दिये गये पुष्पिका वाक्यों से ज्ञात होता है। इनका समय ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य के लगभग माना जाता है। ११. चतुर्विंशतिजिनेन्द्र संक्षिप्तचरितानि प्रस्तुत ग्रन्थ आचार्य अमरचन्द्रसूरि विरचित है। ये अपने समय के बहुत बड़े कवि थे। उक्त ग्रन्थ के अतिरिक्त इनके पद्मानन्द, बालभारत आदि तेरह ग्रन्थ और भी हैं। जैसा ग्रन्थ के नाम से ही ज्ञात होता है, इसमें २४ तीर्थङ्करों का संक्षिप्त जीवन-चरित्र है, जो २४ अध्यायों एवं १८०२ पद्यों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय में तीर्थङ्करों का पूर्वभव, वंश परिचय, नामकरण की सार्थकता, च्यवन, गर्भ, जन्म, दीक्षा, मोक्ष का दिवस, चैत्यवृक्ष की ऊँचाई, गणधर, साधु साध्वी, चौदहपूर्वधारी, Rushabhdev : Ek Parishilan - 242 .

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