Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 47
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth १ १६. १७. हृषीकेश- हृषीक-इन्द्रियों को वश में करने वाले। ९. हरि- पापों का हरण करने वाले। स्वभू- ज्ञातव्य वस्तु के स्वयं ज्ञाता हैं। ११. विश्वम्भर- विश्व का भरण-पोषण, चतुर्गति के दुःखों से बचाने वाले हैं। १२. असुरध्वंसी- मोहकर्म रूप असुर का नाश करने वाले। माधव- मा-बाह्य और आन्तरिक लक्ष्मी के धव-स्वामी हैं। १४. बलिबन्धन- बलि-कर्म बन्धन को नष्ट करने वाले हैं। १५. अधोक्षज- अक्ष-इन्द्रियों को, अधः जीतने वाले साधुओं को ध्यान से प्राप्त होते हैं। मधुढेषी- मधु-मोहरूप परिणाम में दुःखदायी शहद का सेवन नहीं करने वाले हैं। केशव- क-आत्म-स्वरूप की प्राप्ति में ईश-समर्थ मुनियों के, वं-आश्रयभूत हैं। विष्टरश्रवा- विस्तृत श्रुतज्ञानसम्पन्न हैं। श्रीवत्सलांछन- श्रीवत्स के चिन्ह से युक्त हैं। अथवा श्रीवत्स-कामदेव को अपने सौन्दर्य से लांछित-तिरस्कृत करने वाले हैं। श्रीमान्- अन्तरङ्ग तथा बहिरङ्ग लक्ष्मी के स्वामी। नरकान्तक- नरक के विनाशाक हैं। विष्वक्सेन- सम्यक् रूप से उनकी शरण में सभी प्रकार के जीव वैर-विरोध रहित होकर रहते हैं। अच्युत- स्व-स्वरूप से च्युत नहीं होने वाले। चक्रपाणि- हाथ में चक्र का चिन्ह है, अथवा धर्मचक्र के प्रवर्तक होने से सर्वशिरोमणि हैं। २५. पद्मनाभ- पद्मवत् नाभि युक्त हैं। २६. जनार्दन- भव्य जीवों को उपदेश देने वाले। २७. श्रीकण्ठ– मुक्तिरूपी लक्ष्मी के धारक। आचार्य जिनसेन ने भी ऐसे ही साभिप्राय सार्थक शब्दों द्वारा विष्णु के रूप में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति की है। ९. ऋषभदेव और गायत्री मंत्र २३. २४. वैदिक दर्शन में गायत्री-मंत्र को सर्वाधिक प्रधानता प्राप्त है।३२ छान्दोग्योपनिषद् में गायत्री की उपासना को सर्वश्रेष्ठ बतलाया गया है। उपासना की विभिन्न मुद्राओं तथा जप की प्रणालियों का भी वहाँ विस्तृत वर्णन मिलता है।३३ ऋक तथा सामदेव के भाष्यानुसार उक्त मंत्र का अर्थ निम्न प्रकार से किया है-'जो सवितृ-देव (सूर्यदेव) हमारी धी शक्ति को प्रेरणा करते हैं, हमें उन्हीं सवितृ-देव के प्रसाद से प्रशंसनीय अन्नादि रूप फल मिलता है।' प्रस्तुत गायत्री-मंत्र की व्याख्या को ध्यानपूर्वक देखा जाय तो प्रतीत होता है, कि उसमें सूर्य की ३२ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात आपो ज्योतिरसोमतं ब्रह्माः ।। -गायत्री मंत्र, ऋग्वेद ३।६२।१० ३३ छान्दोग्योपनिषद् ३।१२।१ -36255 Rushabhdev : Ek Parishilan

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