Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth यूनान में सूर्यदव अपोली को ऐसी प्रतिकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका साम्य ऋषभदेव की प्रतिकृति के साथ हो सकता हैं।' डॉक्टर कालीदास नाग ने मध्य एशिया में डेल्फी स्थल से संप्राप्त एक आर्गिव प्रतिमूर्ति का चित्र अपनी पुस्तक में दिया है, जिसे वे लगभग दस सहस्र वर्ष पुराना मानते हैं, जो भगवान् ऋषभदेव की आकृति से मिलता-जुलता है। इसमें कन्धों पर लहराती जटाएँ भी दिखाई गई हैं, जो उनके केश रखने का प्रतीक है। 'आर्गिव' शब्द का अर्थ सम्भवतः अग्रमानव या अग्रदेव के रूप में हो सकता है। ‘फणिक लोग जैनधर्म के उपासक भी थे' प्रस्तुत कथन जैन कथा साहित्य में आये हुए फणिक लोगों के उदाहरणों से ज्ञात होता हैं। अतः फणिकों के बाडल (Bull God) ऋषभ ज्ञात होते हैं। यह नाम प्रतीकवादी शैली में है। इस प्रकार भारत के अतिरिक्त बाह्य देशों में भी भगवान् ऋषभदेव का विराट् व्यक्तित्व विभिन्न रूपों में चमका है। सम्भव है, उन्होंने मानवों को कृषि कला का परिज्ञान कराया था अतः वे ‘कृषि देवता' कहे गये हों। आधुनिक विज्ञ उन्हें 'एग्रीकल्चर एज' का मानते हैं। देशना रूपी वर्षा करने से वे 'वर्षा के देवता' कहे गये हैं। केवलज्ञानी होने से 'सूर्यदेव' के रूप में मान्य रहे हैं। ऋषभदेव का जीवन व्यक्तित्व और कृतित्व विश्व के कोटी-कोटी मानवों के लिये कल्याणरूप, मंगलरूप व वरदानरूप रहा है। वे श्रमण संस्कृति व ब्राह्मण संस्कृति के आदि पुरुष हैं। वे भारतीय संस्कृति के ही नहीं; मानव संस्कृति के आद्य-निर्माता हैं। उनके हिमालय सदृश विराट् जीवन पर दृष्टिपात करने से मानव का मस्तिष्क ऊँचा हो जाता है और अन्तरभाव श्रद्धा से नत हो जाता है। -33 273 Rushabhdev : Ek Parishilan

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87