Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 38
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth ने विस्तार से ऋषभदेव के जीवन से सम्बन्धित विविध पहलुओं को प्रमाण पुरस्सर निखारने का प्रयास किया है। यह प्रस्तावना अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। यही प्रस्ताना 'तीर्थङ्कर ऋषभ और चक्रवर्ती भरत' के नाम से पृथक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुई है। (३) जैनधर्म का मौलिक इतिहास इसके लेखक आचार्य हस्तिमलजी महाराज हैं। ग्रन्थ में ऋषभदेव के जीवन पर प्राक-ऐतिहासिक दृष्टि से प्रकाश डाला गया है। (४) जैन साहित्य का इतिहास इसके लेखक पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री हैं। उन्होंने संक्षेप में ऋषभदेव की प्रागैतिहासिकता को सिद्ध करने का प्रयास किया है। (५) भारत का आदि सम्राट६२ इसके लेखक स्वामी कमनिन्दजी हैं, जिन्होंने अनेक प्रमाणों से भरत के साथ ऋषभदेव की प्रागैतिहासिकता को वैदिक प्रमाणों के साथ सिद्ध करने का प्रयास किया है। (६) प्रागैतिहासिक जैन-परम्परा६३ इसके लेखक डॉ. धर्मचन्द्र जैन है, जिन्होंने विविध ग्रन्थों के प्रमाण देकर जैन-परम्परा को उजागर किया है। साथ ही ऋषभदेव का प्रागैतिहासिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। (७) भरत और भारत४ इसके लेखक डॉ. प्रेमसागर जैन हैं। इन्होंने बहुत ही संक्षेप में प्रमाण पुरस्सर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सम्राट भरत से ही भारत का नामकरण हुआ है। ऋषभदेव के सम्बन्ध में भावुक भक्त कवियों ने राजस्थानी, गुजराती व अन्य प्रान्तीय भाषाओं में अनेक चरित्र तथा स्तुतियाँ, भजन, पद व सज्झाय निर्माण किये हैं। आचार्य अमोलकऋषिजी महाराज ने श्री ऋषभदेव का चरित्र लिखा है। भाषा में राजस्थानी का पुट है। इनके अतिरिक्त भी अन्य अनेक चरित्र उपलब्ध होते हैं। उपाध्याय यशोविजयजी, मोहनविजयजी, आनन्दघनजी, देवचन्द्रजी विनयचन्द्रजी प्रभृति शताधिक कवियों की रचनाएँ प्राप्त होती हैं, जिनमें ऋषभदेव के प्रति भक्ति-भावना प्रदर्शित की गई है। जैन कवियों ने ही नहीं, अपितु वैदिक परम्परा में भी सूरदास, वारह, रामानन्द, रज्जव, बैजू, लखनदास, नाभादास प्रभृति कवियों ने ऋषभदेव के ऊपर पद्यों का निर्माण किया है। सारांश यह है कि भगवान् ऋषभदेव पर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती व अन्य प्रान्तीय भाषाओं में एवं जैन परम्परा के ग्रन्थों में जिस प्रचुर साहित्य का सृजन हुआ है, वह भगवान् ऋषभ के सार्वभौम व्यक्तित्व को प्रकट करता है। साधन, सामग्री के अभाव में संक्षेप में हमने उपर्युक्त पंक्तियों में जो परिचय दिया है, उससे सहज ही परिज्ञात हो सकता है कि ऋषभदेव जैन परम्परा में कितने समाहित हुए हैं। प्रसाद वर्णी शान्न (वर्तमान में देहहामण्डल, वीर संवर३३९६ । ६० आचार्य हस्तिमलजी महाराज, जैन इतिहास प्रकाशन समिति, लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर (राजस्थान)। ६१ पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, भदैनी, वाराणसी वी. निर्वाण संवत् २४८६। ६२ स्वामी कर्मानन्दजी, दिगम्बर जैन समया, मुलतान (वर्तमान में देहली) वी. सं. २४७९, वि. सं. २००६। ६३ डॉ. धरमचन्द जैन, रांका चेरिटेबिल ट्रस्ट, बम्बई-१, भारत जैन महामण्डल, वीर संवत् २५००। ६४ डॉ. प्रेमसागर जैन, दिगम्बर जैन कालिज प्रबन्ध समित, बड़ौत (मेरठ) वीर नि. सं. २३९६ । Rushabhdev : Ek Parishilan - 246

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