Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 30
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth (१२) भगवान् को केवलज्ञान की उत्पत्ति । (१३) माता मरुदेवी को केवलज्ञान एवं निर्वाण । (१४) समवसरण, भगवद्देशना (मधुबिन्दु की कथा)। (१५) भरतपुत्र पुंडरीक को प्रथम गणधर की पदवी । (१६) भरत की दिग्विजय का वर्णन । (१७) सुन्दरी की दीक्षा। (१८) भरत-बाहुबली के पञ्च युद्ध । (१९) बाहुबली की दीक्षा एवं केवलज्ञान । (२०) ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति । (२१) मरीचि का अभिमान । (२२) प्रथम गणधर पुंडरीक की मुक्ति। (२३) भगवान् ऋषभदेव का निर्वाण । (२४) भगवान् का अग्नि-संस्कार । (२५) भरत को आरिसा भवन में केवलज्ञान । (२६) भरत का निर्वाण। यहाँ मुख्य ध्यान देने की तीन बातें हैं- प्रथम तो भरतपुत्र 'पुंडरीक' की प्रथम गणधर पदवी। त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, आवश्यक चूर्णि, आवश्यक नियुक्ति आदि में प्रथम गणधर का नाम 'ऋषभसेन' दिया है। द्वितीय प्रमुख बात मरुदेवी का अग्नि-संस्कार है, जबकि अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थों में मरुदेवी माता के कलेवर को क्षीर-समुद्र में प्रक्षिप्त करने का उल्लेख मिलता है। भरत-बाहुबली के युद्ध में दृष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध, दण्डयुद्ध एवं वचनयुद्ध- इन पाँच युद्धों का निर्देश किया है। इससे पूर्व भरत एवं बाहुबली की सेना का परस्पर द्वादश वर्ष तक घमासान युद्ध चलने का आचार्य ने वर्णन किया है। इस प्रकार कथा सूत्र इसमें विकसित हुआ है। * संस्कृत-साहित्य मे ऋषभदेव : १. महापुराण प्रस्तुत ग्रन्थ महापुराण जैन पुराण ग्रन्थों में मुकुटमणि के समान है। इसका दूसरा नाम 'त्रिषष्टि लक्षण महापुराण संग्रह' भी है। इसके दो खण्ड हैं- प्रथम आदिपुराण या पूर्वपुराण और द्वितीय उत्तरपुराण। आदिपुराण सैंतालीस वर्षों में पूर्ण हुआ है, जिसके बयालीस पर्व पूर्ण तथा तैतालीसवें पर्व के तीन श्लोक जिनसेनाचार्य के द्वारा विरचित हैं और अवशिष्ट पाँच पर्व तथा उत्तरपुराण श्री जिनसेनाचार्य के प्रमुख शिष्य गुणभद्राचार्य द्वारा निर्मित हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ मात्र पुराण ग्रन्थ ही नहीं, अपितु महाकाव्य है। महापुराण का प्रथम खण्ड आदिपुराण है, जिसमें तीर्थङ्कर श्री ऋषभनाथ और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती का सविस्तृत वर्णन किया गया है। तृतीय आरे के अन्त में जब भोगभूमि नष्ट हो रही थी और कर्मभूमि । नव प्रभात उदित हो रहा था उस समय भगवान् ऋषभदेव का नाभिराजा के यहाँ मरुदेवी माता की कुक्षि में जन्म धारण करना, नाभिराज की प्रेरणा से कच्छ, महाकच्छ राजाओं की बहिनें यशस्वती व सुनन्दा के साथ पाणिग्रहण करना, राज्यव्यवस्था का सूत्रपात, पुत्र और पुत्रियों को विविध कलाओं में पारङ्गत करना ५० श्री जिनसेनाचार्य विरचित, आदिपुराण, संपादक- पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, सन् १९३१ । Rushabhdev : Ek Parishilan - 238

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