Book Title: Ashtakprakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 8
________________ तभी उसमें अहिंसा-हिंसा आदि पारमार्थिक दृष्टि से घटित हो सकते है। १५. इसी तरह एकान्त अनित्य पक्ष भी सही नहीं है। उसमें अहिंसा का संरक्षण नहीं हो पाता। १६. अत: नित्यानित्य पक्ष युक्तिसंगत है। १७. ओदन आदि के सदृश मांस को भक्षणीय नहीं कहा जा सकता! प्राणी का अंग मात्र होने के सादृश्य से यदि मांसभक्षण संगत है तो स्त्रीत्व का सादृश्य होने से पत्नी और माता में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए। १८. मांसभक्षण किसी भी हालत में निर्दोष नहीं माना जा सकता है। १९. मद्यपान भी विपदाकारक है। २०. मैथुन भी अधर्म का कारण है। वह विषमिश्रित अन्न की तरह त्याज्य है। २१. सूक्ष्म बुद्धि से धर्म को ग्रहण करना चाहिए। २२. भाव-विशुद्धि मोक्ष का कारण है। २३. जिनशासन को कभी मलिन नहीं करना चाहिए। प्रत्येक भव में उसकी प्रभावना होनी चाहिए। २४. व्यक्ति शुभाचरण और शुभ भाव से शुभतर भव में जाता है। जीवदया, वैराग्य, विधिपूर्वक गुरुपूजन और विशुद्धशीलवृत्ति पुण्यानुबन्धी पुण्य के निमित्त है। २५. माता-पिता की सेवा प्रव्रज्या का आदि और उत्तम मंगल है, क्योंकि ये माता-पिता धर्म ___में प्रवृत्त मनुष्यों के महान् पूजास्पद हैं। २६. महादान द्वारा ही तीर्थङ्करों का महानुभावत्व सिद्ध है। २७. तीर्थङ्कर नामकर्म के उदय से तीर्थङ्कर समस्त प्राणियों के कल्याण की प्रवृत्ति करते हैं। २८. दीक्षित होते समय राज्यादि के दान में दोष नहीं माना गया है अन्यथा धर्मदेशना भी सदोष हो जायेगी। २९. समभाव की साधना सामायिक है। वह पूर्णतया शुद्ध होने से कल्याणकारी है। ३०. केवलज्ञान आत्मा का स्वभाव है। आत्मस्थ होकर ही वह सर्वलोकालोक प्रकाशक है। ३१. तीर्थङ्कर नामकर्म का उदय होने से वीतराग होने पर भी वे धर्मदेशना में प्रवृत्त होते हैं। ३२. सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होना ही मोक्ष है। मोक्ष सुख पूर्णत: स्वतन्त्र, निष्कांक्ष, निर्विघ्न, स्वाभाविक नित्य और भयमुक्त होता है। अष्टकप्रकरण का मूल उद्देश्य रहा है जैनधर्म के व्यावहारिक पक्ष को प्रस्तुत करना और उसके महत्त्व को स्पष्ट करते हुए पारमार्थिक स्वरूप की ओर संकेत करना। आचार्य हरिभद्र ने युगीन आवश्यकता देखकर अपना साहित्य सृजन किया जो आज भी प्रासंगिक है। आशा है सुधी पाठकों को डॉ. सिंह का यह अनुवाद रुचिकर सिद्ध होगा। दिनांक २३.७.२००० प्रोफेसर भागचन्द्र जैन 'भास्कर' निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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