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अनवने
अनाध्याने
अनवने -I. iii. 66
अनाचितादीनाम् -VI. ii. 146 पालन करने से भिन्न अर्थ में (भुज धातु से आत्मनेपद (गति, कारक तथा उपपद से उत्तर क्तान्त उत्तरपद को होता है)।
अन्तोदात्त होता है,सज्ञा विषय में),आचितादि शब्दों को अनव्ययस्य-VI. iii. 65
छोड़कर। (ख इत्सञक है जिसका, ऐसे शब्द के उत्तरपद रहते) . ...अनाच्छादन...-IV.i. 42 अव्यय-भिन्न शब्द को (हस्व हो जाता है)।
देखें-वृत्त्यमत्रावपना IV. 1. 42 37operar - VIII. iii. 46
अनाच्छादनात् - VI.ii. 170 (अकार से उत्तर समास में जो अनुत्तरपदस्थ) अव्यय
आच्छादनवाची शब्द को छोड़कर जो (जातिवाची शब्द भिन्न का विसर्जनीय, उसको नित्य ही सकारादेश होता
तथा कालवाची एवं सुखादि) शब्द, उनसे उत्तर (क्तान्त
उत्तरपद को कृत, मित तथा प्रतिपन्न शब्दों को छोड़कर है; कृ,कमि,कंस,कुम्भ, पात्र,कुशा,कर्णी- इन शब्दों
अन्तोदात्त होता है,बहुव्रीहि समास में)।' के परे रहते)।
अनात् -VI. I. 197 अनस्...-v.iv.94
(दो अचों वाले निष्ठान्त शब्दों के आदि को उदात्त होता देखें- अनोश्माय: V. iv. 94
है,सज्ञा विषय में), आकार को छोड़कर। अनसन्तात् - V. iv. 103
अनाति-VI. iv. 191 (नपुंसक लिंग में वर्तमान) अन्नन्त तथा असन्तरतत्पुरुष)
(हल से उत्तर भसञ्जक अङ्ग के अपत्य-सम्बधी यकार से (समासान्त टच् प्रत्यय होता है, वेदविषय में)।
का भी) अनाकारादि (तद्धित) परे रहते (लोप होता है)। अनस्ते: -VIII. 1. 73
अनात्मनेपदनिमित्ते - VII. I. 36 अस् को छोड़कर (जो सकारान्त पद. उसको तिप परे (स्नु तथा क्रम् के वलादि आर्धधातुक को इट आगम रहते दकारादेश होता है)।
होता है, यदि स्नु तथा क्रम) आत्मनेपद के निमित्त न हों अनहोरात्राणाम् -III. iii. 137 (कालकृत मर्यादा में अवर भाग कहना हो तो भी ...अनादरयो: -1. in.62 भविष्यत्काल में धातु से अनद्यतन की तरह प्रत्यय-विधि नहीं होती, यदि वह काल का मर्यादा विभाग) दिन-रात
अनादरे -II. iii. 17
अनादर गम्यमान होने पर (मन धात के प्राणिवर्जित कर्म सम्बन्धी न हो।
में चतुर्थी विभक्ति विकल्प से.होती है)। अनाकावे-III. iv. 23
है अनादरे - II. iii. 38 (समानकर्त्तावाले धातुओं में से पूर्वकालिक धात्वर्थ में
(जिसकी क्रिया से क्रियान्तर लक्षित हो.उसमें) अनादर वर्तमान धातु से यद् शब्द उपपद होने पर क्त्वा और
गम्यमान होने पर (षष्ठी तथा सप्तमी विभक्ति होती है)। णमुल् प्रत्यय नहीं होते),यदि अन्य वाक्य की आकाङ्क्षा
अनादेशादेः-VI. iv. 120न रखने वाला वाक्य अभिधेय हो।
लिट् परे रहते) जिस अङ्ग के आदि को आदेश नहीं अनाको-VII.i.1
हुआ है, उसके (असहाय हलों के बीच में वर्तमान जो (अङ्गसम्बन्धी यु तथा वु के स्थान में यथासङ्ख्य करके) अकार, उसको एकारादेश तथा अभ्यासलोप हो जाता है; अन तथा अक आदेश होते हैं।
कित,डित् लिट् परे रहते)। अनाङ्-I.1.14
अनादेशे-VII. 1.86 आशब्दवर्जित (निपात प्रगृह्य संज्ञक होते हैं)। (युष्मद् तथा अस्मद् अंग को) आदेशरहित (विभक्ति) अनाचमे: -VII. 1.34
परे रहते (आकारादेश होता है)। (उपदेश में उदात्त तथा मकारान्त धातु को चिण तथा
अनाध्याने -1. iii. 43
__ अनाध्यान = उत्कण्ठापूर्वक स्मरण करने अर्थ से भिन्न जित, णित् कृत् परे रहते जो कहा गया वह नहीं होता),
अर्थ में वर्तमान (सम् तथा प्रति पूर्वक ज्ञा धातु से आत्मआयूर्वक चम् धातु को छोड़कर ।
नेपद होता है)।
तो।