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व्यक्तित्व,मानसिक स्वास्थ्य आदि पर कुछ बातें कहीं है। यथार्थ रूप में जिसे आज मनोविज्ञान के नाम से जाना जाता है उसकी शुरूआत 19 वीं शताब्दी के मध्य से माना जाना उचित होगा। 1862 में विल्हेल्म वुण्ट ( 1832-1920) ने केन्द्रीय अनुभूतियों पर अपनी मनोविज्ञान की पुस्तक का प्रकाशन किया। अर्थात् आधुनिक मनोविज्ञान 150-160 वर्षों से ( आज की तारीख में),अधिक पुराना नहीं। इसके विपरीत हमारी दार्शनिक और मनोविज्ञान परंपरा प्राचीन है। डॉ. विल्हेल्म वुण्ट ने सन् 1979 में लेप्जिग (Leipzig) विश्वविद्यालय में अपनी प्रयोगशाला स्थापित की । प्रारंभिक अवस्था में उसने आत्ममंथन की पद्धति में अपने विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया। Wundt के मनोविज्ञान में चेतना को समझने के लिए उसके अवयवों को रेखांकित करने पर जोर दिया गया। उनका मानना था कि चेतना के विविध घटक होते हैं तथा उसे उसके अवयवों के माध्यम से समझा जा सकता है । विल्हेल्म की यह बात बहुत दिनों तक जमी नहीं रही सकी। आधुनिक मनोविज्ञान की चिन्तनधारा में अनेक उतार चढाव आए। जर्मनी के ही मनोवैज्ञानिकों ने , जो वुण्ट के विचारों के प्रबल विरोधी थे, उन्होने Gestalt मनोविज्ञान को जन्म दिया। मनोविज्ञान की इस चिन्तनधारा में जो प्रमुख थे वे है Max Wertheime, Kurt, Kofika, Wolfgang Kohler| इनका यह मानना है कि चेतना के विविध पहलुओं का अध्ययन उसके अवयवों को समझने द्वारा सम्भव नहीं है। Gestalt मनोविज्ञान को जर्मनी में 20 वीं शताब्दी के तीसरे दशक तक काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई। मनोविज्ञान की इस चिन्तनधारा ने Learning और Perception के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया। तभी कुछ विद्वानों ने यह प्रश्न उठाना शुरू किया कि चेतना का अध्ययन तो मनोविज्ञान के अध्ययन का विषय हो ही नहीं सकता है। इस पर प्रयोग, प्रशिक्षण संभव नहीं है। जिसका अध्ययन किया जा सकता है वह है व्यवहार और व्यवहार ही मनोविज्ञान के अध्ययन का विषय होना चाहिये। छोटे-मोटे और भी वैचारिक उतार-चढाव आए जिनका उल्लेख हम यहाँ नहीं कर रहे हैं। इस तरह Gestalt मनोविज्ञान के बाद व्यवहार मनोविज्ञान जिस चिन्तनधारा के मुखिया जॉन बी. वाटसन थे, अस्तित्व में आया । व्यवहार मनोविज्ञान का मानना है कि मनोविज्ञान का उद्देश्य व्यवहार के कारणों को खोज निकालना है। Stumili और Responeses के बीच रिश्ता खोजना Behavioural Psychology का मुख्य उद्देश्य बन गया।
अब प्रश्न पैदा होता है कि आज का मनोविज्ञान किन दिशाओं में जा रहा है? किन प्रश्नों का उत्तर खोज रहा है? किन सत्यों को उद्घाटित कर रहा है? जहाँ तक व्यवहार मनोविज्ञान का प्रश्न है, इसका यह मानना है कि मनुष्य के व्यवहार को बाह्य परिस्थितियाँ निर्धारित करती हैं। परिस्थितियों में परिवर्तन होने के साथ उसका व्यवहार परिवर्तित होता है। जब व्यवहार मनोविज्ञान स्थापित होने की प्रक्रिया में था तभी डाक्टरों की एक टीम खड़ी हो जाती है यह कहते हुए कि मानव के व्यवहार के कारण परिस्थितिजन्य न होकर जैव-वैज्ञानिक है। उन डॉक्टरों ने प्रयोग करके यह दिखाना शुरू किया है कि दिमाग के किसी स्थान पर बिजली का झटका देने से एक खास व्यवहार पैदा होता है। दूसरे स्थान पर झटका देने से कुछ और व्यवहार पैदा होता है । व्यवहार मनोविज्ञान परिदृश्य पर Sigmund Freud ( 1856-1939) जो खुद एक डॉक्टर था, अपनी मनोवैज्ञानिक चिकित्सकीय विधियों को जन्म देता है। उसका मानना है कि अचेतन मन मानव के व्यवहार निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विविध विचारधाराएँ आज भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में उत्पन्न एवं तिरोहित हो रही हैं। उनके विस्तार में जाना इस आलेख का उद्देश्य नहीं है। परन्तु यहाँ यह अनुचित न होगा कि हम उन विधियों
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अर्हत् वचन, 23 (4),2011