Book Title: Arhat Vachan 2011 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ संदर्भ :1. श्रवणबेलगोला शिलालेख, संख्या 40,42,47,50, 105, 108 2. पं. कैलाशचन्द 'सिद्धान्ताचार्य', तत्वार्थसूत्र की प्रस्तावना सर्वार्थसिद्धि, आ. पूज्यपाद, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1955 B.B. Datta, Jaina School of Mathematics B.C.M.S. (Calcutta), 29 (1929) : p-115-134 गाथा 1/26 भाष्य तथा 1/27 सर्वार्थसिद्धि 6. Tatvārthādhigama Sutra Bhāşya - Gaikeod oriental series, 2 vol, Baroda, 1935 7. तत्वार्थराजवार्तिक, 2 भाग, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली [-1953, II 1957 8. तत्वार्थश्लोकवार्तिक,सं- मनोहरलाल शास्त्री, माण्डवी- बम्बई, 1918 9. Cosmology, Old & New, By G.R. Jain-Bhartiya Jñānapitha-Delhi-1974 (IInd ed.) 10. मुकुटबिहारीलाल अग्रवाल, गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान, शोधप्रबंध, आगरा वि.वि. आगरा, 1972, पृष्ठ 58,60 11. अनुपम जैन, अर्धमागधी साहित्य में गणित, जैन विश्व भारती वि.वि., लाडनूं, 2008 12. अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्र 3/3, पृ. 227, ब्यावर संस्करण 13. तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य, सूत्र-15, पृष्ठ 293 14. Tatvārthādhigama sūtra bhāsya with Siddha seniya commentory Baroda, 1935 P-293,294 15. तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य 2/52 16. H.R. Kapadia, Introduction Tatvārthādhigama Bhāsya, P. 40-45 17. मुकुट बिहारीलाल अग्रवाल, गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों को योगदान, पृष्ठ 62 18. तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य, सूत्र 3/71 के बाद उद्धृत 19. ये सभी सूत्र उमास्वाति की एक अन्य कृति जम्बूद्वीपसमास में भी उपलब्ध हैं। 20. सर्वार्थसिद्धि - भारतीय ज्ञानपीठ - काशी 3/8/233/5 (अ/सू/पृ/) 21. डॉ. अनुपम जैन, गणित के विकास में जैनाचार्यों का योगदान, शोधप्रबंध, मेरठ वि.वि., मेरठ, 1990 22. जैनेन्द्र सिद्धांत कोष, भारतीय ज्ञानपीठ-दिल्ली , 1974, पृष्ठ 215-217 23. तत्वार्थराजवार्तिक, 2-28-1 24. लक्ष्मीचन्द्र जैन -तिलोयपण्णत्ती का गणित -पृष्ठ-7, पर इस संदर्भ में चर्चा है । शोध दिशाओं को व्यक्त करने वाले अन्य लेखों में इसकी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चर्चा है। 25. तत्वार्थराजवार्तिक, अध्याय -4, सूत्र-6 26. तत्वार्थसूत्र, अध्याय -5, सूत्र-17 27. तत्वार्थराजवार्तिक, अध्याय -4, सूत्र -22 संशोधनोपरान्त प्राप्त : 14.09.11 अर्हत् वचन, 23 (4), 2011

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102