Book Title: Arhat Vachan 2011 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 42
________________ तत्वार्थराजवार्तिक एवं अन्य टीकाओं में निहित गणितीय सिद्धान्त :- सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थराजवार्तिक आदि टीकाओं में काल, क्षेत्र एवं भार माप की सारणियाँ उपलब्ध हैं। राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि से परिवर्ती रचना है फलतः स्वाभाविक रूप से इसका गणितीय चिन्तन सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा परिष्कृत है । सर्वार्थसिद्धि में कालप्रमाण के अन्तर्गत उपमा प्रमाण मान का विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है | 20 भट्ट अकलंक कृत राजवार्तिक में काल मान की सूची विस्तारपूर्वक मिलती है। इस सूची की विशेषता यह है कि यह तिलोयपणत्ती से भिन्न है। तिलोयपण्णत्ती में प्रत्येक आगामी पद पूर्ववर्ती पद से क्रमश: 84 एवं 8400000 गुना अधिक है। 21 जबकि राजवार्तिक ग्रंथ में प्रत्येक पद को पूर्व से 8400000 गुना अधिक माना है । जम्बूदीवपण्णत्तिसंगहो में राजवार्तिक का अनुकरण किया गया है। राजवार्तिक की सूची निम्न प्रकार है । 8400000 वर्ष 8400000 पूर्वांग 8400000 पूर्व 8400000 पग 8400000 पर्व 8400000 नांग 8400000 8400000 कुमुदांग 8400000 कुमुद 8400000 पद्मांग 8400000 पद्म 8400000 नलिनांग 8400000 नलिन 8400000 कमलांग 8400000 कमल 8400000 त्रुटितांग 8400000 त्रुटित 8400000 अटटांग 8400000 अटट 8400000 अममांग 8400000 अमम 8400000 हाहांग 8400000 ET ET 8400000 हू हू अंग 8400000 हू हू 8400000 लतांग 8400000 लता 8400000 महालतांग अर्हत् वचन, 23 (4), 2011 - 01 पूर्वांग - 01 पूर्व - 01 पर्वांग - 01 पर्व 01 नियुतांग - 01 नियुत - 01 कुमुदांग - 01 कुमुद - 01 पद्मांग - 01 पद्म - 01 नलिनांग - 01 नलिन - 01 कमलांग - 01 कमल - 01 त्रुटितांग - 01 त्रुटित - 01 अटटांग - 01 अटट - 01 अममांग - 01 अमम - 01 हाहांग - 01 हा हा - 01 हू हू अंग - 01 हू हू - 01 लतांग - 01 लता - 01 महालतांग - 01 महालता 41

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