Book Title: Arhat Vachan 2011 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 88
________________ गतिविधियाँ वीर शासन जयंती राष्ट्रीय व्याख्यानमाला वीर सेवा मंदिर (जैनदर्शन शोध संस्थान), दरियागंज - नई दिल्ली, ज्ञान एवं शोध का कल्पवृक्ष बनकर विगत81 वर्षों से, अपने समृद्ध पुस्तकालय के माध्यम से श्रुत-सेवा के लिए संकल्पित है। इस वर्ष 17 जुलाई, 2011 को वीर शासन जयंती के पावन प्रसंग पर,वीर सेवा मंदिर में एक राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का भव्य आयोजन हुआ। व्याख्यानमाला समारोह की अध्यक्षता प्रो. समणी चारित्रप्रज्ञा जी, कुलपति - जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूँ (राज.) ने की। आपका भावभीना सम्मान शॉल, खण्ड वस्त्रादि से संस्था के अध्यक्ष श्री सुभाष जैन (शकुन प्रकाशन ) ने किया। आपके साथ समणी आगम प्रज्ञा जी भी पधारी थीं। समणी आगम प्रज्ञा जी का स्वागत संस्थान के महामंत्री श्री विनोद कुमार जैन ने परंपरागत ढंग से किया। समारोह के प्रारंभ में दीप प्रज्ज्वलन - समारोह की अध्यक्ष समणी प्रो. चारित्रप्रज्ञा जी, अध्यक्ष एवं महामंत्री-वीरसेवा मंदिर तथा वक्ता के रूप में बाहर से आये विद्वत् गणों ने किया। जिनवाणी माँ को अर्घ्य समर्पण करके स्तुति का सस्वर वाचन पण्डित डॉ. मुकेश जैन, पं. आलोक जैन के किया। व्याख्यानमाला का शुभारंभ प्रो. कमलेश कुमार जैन, (बी.एच.यू.) वाराणसी के मंगलाचरण से हुआ। वीर सेवा मंदिर के अध्यक्ष श्री सुभाष जैन ने संस्थान का परिचय देते हुए इसकी स्थापना का इतिहास एवं उद्देश्य बताया। आपने कहा कि वर्तमान में संस्थान के पुस्तकालय में 7 हजार से अधिक ग्रंथ एवं 167 हस्तलिखित ग्रंथ मौजूद हैं साथ ही 50 से अधिक ग्रंथों का संस्थान अभी तक प्रकाशन कर चुका है। आपने शोध संस्थान के संस्थापक, विद्या के महार्णव पं. जुगलकिशोर जी 'मुख्तार' साहब का स्मरण करते हुए अन्यान्य विभूतियों के नामों का उल्लेख किया जिन्होंने इस संस्थान को समय-समय पर अपनी सेवाएं देकर इसके उत्कर्ष एवं उत्थान में महती भूमिका निभायी। प्रथम वक्ता के रूप में प्रो. कमलेश कुमार जैन ने वीर शासन जयंती क्या है ? और यह श्रावण कृष्ण एकम् को क्यों मनाई जाती है ? का पौराणिक आख्यान के आधार पर चर्चा करते हुए बताया कि आज के दिन भगवान महावीर स्वामी की दिव्यध्वनि, केवलज्ञान (पूर्ण ज्ञान) होने के 66 दिन बाद खिरी थी। क्योंकि उन लोकोत्तर अर्हन्त परमेष्ठी भ. महावीर को भी एक योग्य शिष्य की तलाश थी जिनके बिना दिव्यध्वनि के खिरने का योग नहीं हो पा रहा था। आपने प्राकृत भाषा के विकास के लिए सुझाव दिया कि प्राकृत गाथानुक्रमणिका का संवर्द्धित / संशोधित संस्करण का पुन: प्रकाशन होना चाहिए। आपने अनुपलब्ध आगम ग्रंथों के प्रकाशन पर जोर दिया। इस समारोह में समणी, सरस्वती पुत्र एवं श्रीमन्त यह त्रिकुटी विराजमान है, जिन पर श्रुत के संरक्षण का उत्तरदायित्व है। द्वितीय वक्ता के रूप में प्रो. सुदीप जी ने प्राकृत भाषा के विकास एवं षट्खण्डागम के विशिष्ट परिप्रेक्ष्य में कहा कि प्राकृत भाषा कालगत भाषा है। कुछ कुतर्कवादियों ने जब यह कहा कि यह बाल, स्त्री व मूों की भाषा है तो भगवान महावीर ने कहा - सही है इन्हीं को सुनाने और समझाने के लिए यह सहज - भाषा है। गुरुकुलों में पांच प्रकार के आचार्य हुआ करते थे उनमें उच्चारणाचार्य, व्याख्यानाचार्य आदि होते थे जो सही पद का सही उच्चारण एवं अर्थ बताते थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृत ग्रंथों की संस्कृत छाया करने से प्राकृत भाषा का भला नहीं हो सकता। अर्हत् वचन,23(4), 2011 87

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