Book Title: Arhat Vachan 2011 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 94
________________ ग्यारह हजार की धनराशि भेंट कर सम्मानित किया गया। जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तर प्रदीप, दिव्याणी (उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी के प्रवचनों की सी.डी.) प्रतिष्ठा पराग- ब्र. जयनिशांत जी प्रतिष्ठाचार्य तथा शास्त्री परिषद के बुलेटिन का विमोचन समाज सेवियों द्वारा किया गया। शास्त्री परिषद द्वाराजैन विश्वविद्यालय की स्थापना, शास्त्रि परिषद् के खिलाफ अनुचित टिप्पणी पर सदस्यता समाप्ति, प्रत्येक सदस्य द्वारा अपने गृह नगर में वर्ष में कम से कम एक धार्मिक आयोजन करने, पाठशाला के खुलवाने में सहयोग, सन्दर्भित प्रस्ताव कार्यकारिणी की स्वीकृति के उपरांत साधारण सभा में पारित किये गये । श्वेताम्बर जैन समाज के प्रमुख विचारक श्री रमेश जी नंदा मुम्बई ने बताया कि उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी के विचारों से प्रभावित होकर प्रेम, भाईचारा, और सद्भावना के सन्देश को लोगों के पास पहुँचायें। शास्त्रि परिषद् द्वारा अभी तक सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनाये जाने की प्रशंसा करते हुए मुख्य अतिथि श्री अरविंद भाई दोशी ने संस्थाओं से इसी तरह सर्वसम्मति से कार्य करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि विद्वान् सर्वत्र पूज्यते । पूज्य क्षुल्लक श्री प्रयत्न सागर जी महाराज ने जिनवाणी और आध्यात्म के प्रचार-प्रसार में पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज एवं शास्त्रि परिषद् के विद्वानों की इस बात के लिए सराहना की कि उन्होंने जैन परम्परा से भूले-भटके लोगों को मूलधारा में लाने का सराहनीय प्रयास किया है। भगवान जिनेन्द्र देव के समकक्ष किसी को न रखने तथा वीतराग देव की परम्परा के पोषक बनने की पुरजोर अपील करते हुए परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस जैन बड़ौत ने बताया कि शास्त्रि परिषद् पंथवाद के ऊपर रही है परन्तु देव शास्त्र गुरु के संरक्षण की भी उसकी जिम्मेदारी है। जैन शासन की गद्दी पर बैठकर लोगों को असत्य का प्रलाप नहीं सत्य का प्रचार करना चाहिए। आगम में न तेरापंथ हैं न बीसपंथ उसमें तो सिर्फ एक ही पंथ है वह है आगमपंथ । तीर्थंकरों के साथ अन्य देवी-देवताओं को समकक्ष रखकर अभिषेक करना ठीक नहीं है। देवी-देवताओं के सम्मान में कोई आपत्ति नहीं है। आपने लोगों से उन्माद का हिस्सा न बनने तथा मूल मान्यताओं के प्रचारप्रसार हेतु सभी विद्वानों तथा समाज से कार्य करने की पुरजोर अपील की ताकि सामाजिक एकता बनी रह सके । कार्यक्रम का संचालन ब्र. जयनिशांत व पं. विनोद जैन रजवांस ने किया । अर्हत् वचन सदस्यता शुल्क भारत व्यक्तिगत 150=00 वार्षिक 10 वर्षीय 1500=00 आजीवन / सहयोगी 2100=00 अर्हत् वचन, 23 (4), 2011 संस्थागत 250=00 2500=00 नोट चेक कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के नाम इन्दौर में देय भेजें। विदेश US$20=00 US$ 200=00 US$ 300=00 93

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