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वर्गणाओं के क्रम में नवीं संख्या - भाषा वर्गणा है।
पुद्गल द्रव्य मुख्यत : दो रूपों (1) अणु व (2) स्कन्ध अवस्था में पाया जाता है । अणु अविभागी, अदृश्य, अग्राह्य, स्कन्धान्त्य, धातु चतुष्करण , एक , आदेशमात्र, मूर्त, शब्द कारण, स्कन्धान्तरित, द्विस्पर्शी आदि मध्य व अन्त से रहित अवस्था वाला है तथा 343 घनराजू क्षेत्र प्रमाण (त्रिलोक ) में सर्वत्र विद्यमान है किन्तु दो अणुओं के संयोग से , विभावरूप अवस्था को प्राप्त होकर स्कन्ध बन जाता है। इन स्कन्धों में दो से लेकर संख्यात, असंख्यात, अनन्त व अनन्तान्त अणु हो सकते हैं। अणुओं के संयोग से, इस स्कन्ध अवस्था में विभिन्न गुण भी प्रकट हो जाते हैं ।आचार्य वीरसेन स्वामी तथा फिर सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र ने क्रमश: धवला व गोम्मटसार कर्मकाण्ड में इसी आधार पर 23 वर्गणारूप भेद किये हैं। इतना विशेष है कि वर्गणा शब्द से अकर्म जाति, कर्म जाति व नोकर्म जाति के पुदगलों का बोध भी होता है।
"अणुसंखांसंखेज्जाणंता य अगेज्झगेहि अंतरिया। आहार तेजभासामण कम्मइया धुवक्खंधा ।।594||
सातंर णिरतंरेण य सुण्णा पत्तेय देह धुवसुण्णा। बादर णिगोद सुण्णा सुहमणिगोदा णभो महाक्खंधा ।। 595112 अर्थात्- लोक में तेइस वर्गणाएँ हैं - (1) अणुवर्गणा (2) संख्याणु (3) असंख्याणु (4) अनन्ताणु (5) आहार (6) अग्राह्य (7) तैजस (8) अग्राह्य (9) भाषा (10) अग्राह्य (11) मनो (12) अग्राह्य (13) कार्माण (14) ध्रुव (15) सातंरनिरन्तर (16) शून्य (17) प्रत्येक शरीर (18) ध्रुवशून्य (19) बादर निगोद (20) शून्य (21) सूक्ष्म निगोद (22) नभो या शून्यनभो (23) महास्कन्ध वर्गणा।
उन वर्गणाओं में 'शब्द वर्गणा ' का क्रमांक नौ है । इसे भाषा वर्गणा भी कहते हैं।
आठवीं अग्राह्य वर्गणा की उत्कृष्ट स्थिति से एक परमाणु अधिक होने पर भाषा वर्गणा की जघन्य अवस्था आती है तथा इस जघन्य स्थिति में सिद्धराशि के अनन्तवें भाग से भाषित लब्ध को मिलाने पर भाषा वर्गणा की उत्कृष्ट स्थिति आती है जबकि मध्यम अवस्थाएँ असंख्यात होती हैं। धवलाकार ने इस वर्गणा की स्थिति (जघन्य) को निर्धारित कर सूत्र दिया है -
"अगहणदव्व वग्गणाणमुवरि भासादव्व वग्गणा णाम 183143 अर्थात् - अग्रहण द्रव्य वर्गणाओं के ऊपर भाषा द्रव्य वर्गणा है । अत: भाषा वर्गणा की जघन्य स्थिति = आठवीं अग्राह्य वर्गणा का उत्कृष्ट + 1 परमाणु भाषा वर्गणा की उत्कृष्ट स्थिति = जघन्य स्थिति + जघन्य स्थिति / सिद्धराशि का अनन्त
सिद्ध राशि का अनन्तवां भाग मिलाने पर भाषा वर्गणा की उत्कृष्ट स्थिति अनन्त ही आती है तथा जो भी द्वीन्द्रिय से संज्ञी पंचेन्द्रिय जाति तक के जीव, भाषा के लिये त्रस नाड़ी में इन्हीं कणिओं के अपने अंगों, उपांगों के उपकार से तथा स्वर नाम कर्म के उदय से भाषा वर्गणा को वचनों में परिवर्तित करते हैं।
भाषा वर्गणा के स्कन्धों से चार प्रकार की भाषा होती है।
द्रव्य व भाव के भेद से वाक् (भाषा ) के दो भेद किये गये हैं । भाववाक् वीर्यान्तराय, मतिज्ञानावरण व श्रुतज्ञानावरण कर्मों के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नामकर्म से उदय के निमित्त से होने वाला - पौद्गलिक है। इनके अभाव में बोलने की शक्ति अर्थात् भाव वाक् का अभाव है। तदनन्तर भाव वाक् की शक्ति से युक्त (वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से ) क्रियावान् आत्मा के द्वारा प्रेरित
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अर्हत् वचन, 23 (4),2011