Book Title: Arhat Vachan 2011 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 31
________________ "तद विददो घण सुसिरो घोसो भासा त्ति छव्विहो सद्दो। सो पुण सद्दो तिविहो संतो घोरो य मोघो य ।।2।। वीणा , त्रिसरिक, आलापिनी, वव्वीसक, सुक्खुण आदि से उत्पन्न शब्द तत है। भेरी, मृदङ्ग, पटह आदि से उत्पन्न शब्द वितत है । जय, घण्टा आदि ठोस द्रव्यों के अभिघात (चोट) से उत्पन्न शब्द सुषिर हैं। घर्षण को प्राप्त हुए द्रव्य से उत्पन्न शब्द घोष हैं। भाषा- अक्षरात्मक व अनाक्षरात्मक भेद से दो प्रकार की है। वे छह प्रकार के शब्द अन्यत्र उत्पन्न हुए तथा कर्ण प्रदेशों में प्रवेश करके श्रोत्रेन्द्रिय ‘भाव रूप से क्षयोपशम को प्राप्त जीव प्रदेशों से सम्बद्ध है, तब उनका ग्रहण होता है। इसे ही 'श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रह' नाम आचार्यों द्वारा दिया गया है। शब्द के लिये एक और तथ्य जानना अत्यंत आवश्यक है कि शब्द पुद्गल अपने उत्पत्ति स्थान से उछलकर (स्फोट को प्राप्त होकर ) दशों दिशाओं में जाते हैं तथा उत्कृष्ट अवस्था में तीन लोक के अन्त में अन्तिम तनुवात वलय तक भी जा सकते हैं। धर्मास्तिकाय का अभाव होने से, ये अलोकाकाश में आगे नहीं जा सकते। अपने उद्गमस्थल से निकलकर शब्द पर्याय में परिणत हुए प्रदेश में अनन्त पुद्गल अवस्थित हैं। किन्तु दूसरे आकाश प्रदेश (abjacent) में उनसे अनन्तगुण हीन पुद्गल अवस्थित रहते हैं। तीसरे आकाश प्रदेश में उनसे भी अनन्त गुणाहीन पुद्गल अवस्थित रहते हैं। इस प्रकार एक-एक आकाश प्रदेश को क्रम से स्पर्श व उलंघकर व अनन्त गुणाहीन होतेहोते अन्तिम वातवलय पर्यन्त दशों दिशा में जाते हैं। इस प्रकार ये सभी पुद्गल समयान्तर में लोकान्त तक पहुँच जायें, यह नियम नहीं है कि ऐसा आदेश (उपदेश, सिद्धान्त) है कि कितने ही शब्द पुद्गल दो समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल में लोकान्त को पहुँचते हैं। इस तथ्य से भी वचन (शब्द) का मूर्तिपना सिद्ध होता है कि ये वचन, मूर्त दीवार आदि से टकराकर रोक लिया जाता है तथा बहुत तीव्र शब्द से मन्द दब जाता है। भौतिक विज्ञान (Physics) के आधार पर ऊर्जा के 5 भेद-ताप , प्रकाश, चुम्बकत्व, विद्युत एवं ध्वनि हैं । यहाँ ध्वनि की प्रासंगिकता होने से, ध्वनि क्या है ? इसकी सरल व्याख्या करते हुए कहा जाता है - ध्वनि , उर्जा का एक रूप है जो श्रोता के कानों में स्पन्दन उत्पन्न करता है। जब कोई पत्थर या कोई भारी पदार्थ स्थिर जल, कूप या तालाब में फेंका जाता है तब जल की स्थिरता में विक्षोम उत्पन्न होकर तरंगें बनती हैं जिनका व्यास निरन्तर वृद्धि को प्राप्त होता हैं तथा दो के टकराव से ध्वनि उत्पन्न होती है और चारों ओर फैल जाती है अर्थात् वस्तु के संघात के कारण निर्मित कंपन (Vibration ) से उत्पन्न हुई। यह ध्वनि अन्य प्रकार के संघात (टक्कर), वस्तु के टूटने ,खुरचने,रगड़ने, घुमाने, हिलाने आदि से भी उत्पन्न हो सकती है। ध्वनि ऊर्जा, जिस क्षेत्र में संचार (Propagation) करती है, वह माध्यम (Medium) है। उस समय कम्पन के कारण उत्पत्ति स्थान (ध्वनि के स्रोत) के निकटतम कणों (abjaent particles) पर एक दबाव उत्पन्न होता है जिससे वे स्थिर अवस्था साम्य अवस्था (ground state, equilibrium state) से गति अवस्था को प्राप्त होते हैं । इसके फलस्वरूप वहाँ उच्च दबाव का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह संपीडन (Compression) कहलाता है। कम्पन को प्राप्त करना या ऊर्जा का अपने स्रोत पर वापिस आती है, जिससे कम दबाव का क्षेत्र बनता है ,यह अवस्था संकुचन (rarefaction) कहलाती है। कम्पायमान तरंगों के निरन्तर संपीडन व संकुचन के कारण, वह ध्वनि श्रोता के कानों तक पहुँचती रहती है। इस प्रकार बारम्बार संपीडन व संकुचन के कारण, माध्यम के कणों के निरन्तर कम्पायमान होने पर उत्पन्न विक्षोम (disturbance ) तरंगों को जन्म देता है अर्थात् गतिमान विक्षोम 30 अर्हत् वचन, 23 (4),2011

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