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अर्हत वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष-23, अंक-4, अक्टूबर-दिसम्बर - 2011, 37-43 तत्वार्थ सूत्र एवं उसकी टीकाओं
__में निहित गणित - अनुपम जैन* एवं संजय जैन**
सारांश प्रस्तुत आलेख में जैन परम्परा में संस्कृत भाषा एवं सूत्रात्मक शैली में लिखे गये सर्वप्रथम एवं सर्वमान्य ग्रंथ तत्वार्थ सूत्र तथा उनकी टीकाओं सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य, तत्वार्थराजवार्तिक (तत्वार्थवार्तिक) एवं तत्वार्थश्लोकवार्तिक में निहित गणितीय विचारों एवं सूत्रों को संकलित किया गया है।
तत्वार्थ सूत्र एवं उमास्वामी (उमास्वाति ) : तत्वार्थ सूत्र संस्कृत भाषा में निबद्ध जैनों का अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ है। किसी भी जैनाचार्य द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई यह प्रथम रचना है। सूत्रात्मक शैली में जैन धर्म एवं दर्शन के सार को व्यक्त करने वाली इस रचना के रचनाकार , उनके जीवन परिचय आदि के सन्दर्भ में अत्यधिक मतभेद होना निश्चय ही खेदजनक है। इस सूत्र ग्रंथ में 10 अध्याय एवं कुल 357 सूत्र हैं । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार कुल 344 सूत्र है। इन सूत्रों के पाठों में भी यत्र-तत्र दोनों पम्पराओं में मतभेद हैं।
जैन वागमय के विस्तृत अध्ययन, शिलालेखों के सर्वेक्षण एवं अन्तर्बाह्य साक्ष्यों के आधार पर सूत्र के मूल रचानाकार गृद्धपिच्छाचार्य ( अपरनाम उमास्वामी ) प्रतीत होते है।' महान दिगम्बर जैनाचार्य कुन्दकुन्द के शिष्य एवं समन्तभद्र आचार्य के समकालीन उमास्वामी दूसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध के विद्वान थे। श्वेताम्बर परम्परा के विद्वान तत्वार्थ सूत्र की एक टीका तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य को मूल सूत्रकार की ही कृति मानते हैं । इस भाष्य के अन्त में दी गई प्रशस्ति के अनुसार भाष्य के कर्ता वाचक उमास्वाति उच्चानगर शाखा के थे। तत्वार्थ सूत्र के विविध संस्करणों में ही दी गई प्रस्तावनाओं, एतद् विषयक लेखों में दिये गये तर्कों से यह स्पष्ट है कि तत्वार्थ सूत्रकार एवं भाष्यकार दो भिन्न व्यक्ति हैं । मूल सूत्रकार गृद्धपिच्छाचार्य (आचार्य उमास्वामी) का काल द्वितीय शताब्दी है एवं इनका जन्म स्थान कुसुमपुर है ।।
सर्वार्थसिद्धि :- यह दिगम्बर परम्परा मान्य मूल सूत्र पाठ पर की गई सर्वप्रथम एवं अत्यन्त विस्तृत टीका है। इसकी रचना देवनन्दि (पूज्यपाद ) नामक जैनाचार्य ने पाँचवी / छठी शताब्दी ई. में की थी। इस कृति एवं तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य के 17 सूत्रपाठों में मतभेद हैं।यह कृति प्रकाशित हो चुकी है।
तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य :- वाचक उमास्वाति कृत तत्वार्थ सूत्र की यह बहुचर्चित टीका है। गणितीय दृष्टि से तत्वार्थ सूत्र की मात्र इसी टीका का अब तक विधिवत अध्ययन हुआ है । भाष्य के अन्त में उपलब्ध प्रशस्ति के आधार पर इसके रचनाकार उच्चानगर शाखा के श्वेताम्बर जैनाचार्य वाचक उमास्वाति है। इसकी माता का नाम वाहसी एवं पिता का नाम स्वाति था। इनके दीक्षा गुरू, वाचक गुरू एवं वाचक प्रगुरू क्रमश: घोषनन्दि, मूल एवं गुण्डपाद थे। इसी प्रशस्ति के आधार पर इनका जन्म स्थान न्यग्रोधिका है। इसका रचना काल दत्त ने 150 ई.पू. माना है। के.बी. पाठक,
* प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष-गणित विभाग, शासकीय होलकर विज्ञान महाविद्यालय, ए.बी.रोड़, इन्दौर (म.प्र.) ** गणित विभाग, शासकीय होलकर विज्ञान महाविद्यालय , ए.बी.रोड, इन्दौर (म.प्र.)