Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 2
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 21
________________ आएसण] [श्राअोस આમાં ધીની પ્રધાનતાને લીધે ઘી શિવાયની धीरधा२ ४२वी ते. द्रव्य संपादन करने का वस्तुमा ५ धान पयार था. एक का । उपायः बृद्धि के लिये देन लेन करना. अधिकता से उसका सब में उपचार करना; earning wealth; business of जैसे कि भोजन में घी अधिक होने पर यह Jending etc. जं. प. ३.५६;-पभोगकहना कि आज तो घी ही घी खाया इस में | संपउत्त. त्रि. ( -प्रयोगसंप्रयुक्त) द्रव्य घी की प्रधानता से भोजन की अन्यवस्तुओं में ઉપાર્જન કરવા ના ઉપાયમાં પ્રવૃત થયેલ. भी घी का उपचार किया. denominating द्रव्योपार्जन के उपाय मे प्रवृत्त-तस्पर. a thing by giving the whole (one) engaged in moneyof it the name of a part which making concerns. ज. प. ३, ५६; is prominently found there. आश्रोजिया. स्त्री० ( आयोजिका ) तीर आएसण. न० ( प्रादेशन) सुपा२ कोरेगी। પરિણામથી કરવામાં આવતી ક્રિયા કે જેનાથી ---१२ पार्नु. लुहार वगेरह का कारखाना, संसार साथेने संबंध य छे. वि परिणाम A workshop of a blacksmith से की जाने वाली क्रिया, जिससे कि संसार etc. दसा. १०, १; आया० २, २,२,८०; सम्बन्ध बढता है. An action done पासिय न० ( प्रादेशिक ) स धुने ! भाट with keen thought-activity કલ્પી રાખેલ અટારાદિ આહારનો એક દેવ. increasing one's worldly attachसाधु को देने की इच्छा से रखा हुआ आहार | ment. पन्न. २२; वगेरहः आहार का एक दोष. Food ete. | श्राोज्ज. न. (अातोय ) वाध; पानि pre-determined to be given to ज; वाद्य. A kind of musical a Sidhu; a kind of sin relating instrument. ओव. ३०; to food. पिं० नि० २२६; श्राोज्ज. त्रि. (श्रायोज्य ) भयो। पूर्व श्राोग. पुं० (प्रायोग) द्रव्य संपादन १९ लोया योय. मर्यादा पूर्वक जोड़ने योग्य. या पाय: बधा-व्यापार करे. द्रव्य उपा- Worth being united within जैन करने का उपाय; धंदा व्यापार आदि. limits. विशे० २३; Business; trade; means of पाओस. धा० I, II. (श्रा+ऋश् ) ति२earning. भग० २, ५; सूय० २, ७, २; २४॥२ ४२; 8५। ३।. तिरस्कार करना; (२) सानी मायः; सभी त्रशुगणे। उलाहना देना. To upbraid; to ५८. धन की आमदनी: दुगना तिगना reproach. बटाव. inconne; double or treble श्राधाससि. उवा. ७, २००७ profit of exchange. ओव० ० ५० श्रामोसेजसि. उवा० ७, २००; ३, ५६;-पभोग. पुं० (-प्रयोग आयोग- श्राश्रोसेजा. विधि० उवा० ७, २००; स्वार्थलाभस्म प्रयोगा उपाया: ) -५ | श्राओस. पुं० ( 5 ) ५२।kि; सूर्याय संपादन ४२पानी पाय; यष्यिमाटे | पड़वानी से 4. सवेरा; प्रात्तःकाल. शुओ १४ २०५२ १५ नी पटनोट * . देखो पृष्ठ नंबर १५ का फूटनोट * . Vide footnote * of the 15th page. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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