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ra - कथानककी इन व्याकरणसंबंधी विशेषताओंको सम्मुख रखकर अब हम देखें कि उसकी भाषा ब्रजभाषा कही जाय, या अवधी या कुछ और।
ब्रजभाषाकी विशेषतायें ये हैं '
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१ संज्ञा तथा विशेषणोंमें 'ओ' या औ' अन्तवाले रूप, जैसे बड़ो, छोटो, कारो, पीरो, घोड़ो ।
२ संज्ञाका विकृतरूप बहुवचन 'न' प्रत्ययके रूपान्तर लगाकर बनाना, बैसे, राजन. घोड़न, हाथिन, असवारन आदि ।
३ परसगों में कर्म-सम्प्रदानमें 'कौ', करण - अपादानमें 'सों', 'तें', और संबंध में 'कौ', ' को ' |
"
४ सर्वनामोंमें उत्तम पुरुष मूलरूप एकवचन ' हौ' विकृतरूप ' यो सम्प्रदान कारकके वैकल्पिक रूप 'मोहिं ' आदि, संबंधके ओकारान्त ' मेरो', " हमारो ' आदि ।
५ क्रियाके रूपों में ' है ' लगाकर भविष्य निश्चयार्थ बनाना, जैसे, चलि है; तथा सहायक क्रियाके भूत निश्चयार्थके हो, हतौ आदि रूप ।
इन लक्षणोंको जब हम अर्ध-कथानक में ढूँढ़ते हैं तो विशेषणों में 'औ' अन्तवाले रूप कहीं कहीं दृष्टिगोचर हो बाते हैं --- जैसे
आयौ मुगल उतावला, सुनि मूलाकौ काल ।
मुहर छाप घर खालसै, कीनौ लोनौ माल ॥ २२ ॥
तथा कारक - रचनाकी विशेषतायें भी बहुत कुछ मिलती हैं ।
किन्तु शेष लक्षण नहीं मिलते, इससे अर्ध-कथानककी भाषाको पूर्णतः ब्रजभाषा नहीं कह सकते ।
raath विशेष लक्षण निम्न प्रकार ह
१ संज्ञामें प्रायः तीन रूप, हस्व, दीर्घ तथा तृतीय, जैसे घोड़, बोड़वा, घोड़उना ।
२ विकृतरूप बहुवचनका चिह्न 'न' ब्रजके समान जैसे ' कर्ममें ' का ' संबंध में 'केर ' अधिकरणमें 'मा' |
१ देखो, व्रजभाषा व्याकरण, १९३७, पृ० १५-१६ ।
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घरन' किन्तु
डा० धीरेन्द्र वर्माकृत, अलाहाबाद,
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