Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 51
________________ भूमिका अर्ध-कथानक कविवर बनारसीदासजीने अपनी इस निजकथा या आत्म-कथामें अपने जीवनके ५५ वर्षोंका घटनाबहुल इतिहास लिखा है । मनुष्यकी उत्कृष्ट आयुमर्यादा ११० वर्षकी बतलाकर उसकी आधी कथा इसमें दी है, इसलिए उन्होंने इसका सार्थक नाम अर्घ कथानक रखा है और अगहन सुदी पंचमी, सोमवार, संवत् १६९८ को यह समाप्त की गई है। इसके आगेकी कथा वे नहीं लिख सके । क्योंकि कुछ ही समय बाद १७०० के अन्त में उनका शरीरान्त हो गया । हिन्दी साहित्य में यह अनोखी रचन है । इस देशकी अन्य भाषाओं में भी इतनी पुरानी कोई आत्म कथा नहीं है। अभी तक तो सर्वसाधारणका यही खयाल है कि यह चीज हमारे यहाँ विदेशोंसे आई है और वहींकी आत्म कथाओंके अनुकरणपर यहाँ आत्मकथाएँ लिखनेका प्रारम्भ हुआ है । परन्तु अबसे तीन सौ वर्ष पहले यहाँके एक हिन्दी कविने भी आत्म कथा लिखीं थी, इस बातपर इसे देखे बिना कोई सहसा विश्वास नहीं कर सकता' । यद्यपि इस समय जिस ढंगकी आत्म-कथाएँ लिखी जाती हैं, उनमें और अर्ध-कथानक में बहुत अन्तर है, फिर भी इसमें आत्म-कथाओंके प्रायः सभी गुण मौजूद हैं और भारतीय साहित्य में यह गर्व करनेकी चीज है । इसमें कविने अपने गुणों के साथ साथ दोषोंको भी बड़ी स्पष्टतासे प्रकट किया है और सर्वत्र ही सचाईसे काम लिया है । ' अर्ध-कथानक ' गद्यमें नहीं, पद्यमें लिखा गया है और उसकी भाषाको कविने मध्य देसकी बोली कहा है Jain Education International . -A १ कहते हैं कि बादशाह बाबरने फारसीमें जो आमनरित ( बाबरनामा ) लिखा है, वह एक अपूर्व ग्रन्थ है । उसमें बाबरवा विस्तृत और मार्मिक निरीक्षण, उसकी खिलाड़ी और विनोदी वृत्ति, जीवन के विविध रोमहर्षक प्रसंग, उसकी रसिकता, मन्ष्यपरीक्षा, आदतें आदिका मनो वर्णन है । - देखिए अक्टूबर १९४७ के नवभारत (मराठी) में प्रा० दत्तो मन पोतदारका 'अर्ध-कथानक ' नामक लेख । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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