Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ ३७ चौपई इहि बिधि उदै भयौ जब पाप । हलहलाइकै आई ताप ॥ तब बनारसी जहमति परे । लंघन दस निकोररे करे ॥ ३२५ फिर पथ लीनौं नीके भए । मास एक बाजार न गए। खरगसेनकी चीठी धनी । आवहिं पै न देइ आपनी ॥३२६ दोहरा उत्तमचंद जबाहरी, दुलहको लघु पूत । सो बनारसीका बड़ा, बहनेऊ अरिभूत ॥ ३२७ तिनि अपने घरकौं दिए, समाचार लिखि लेख । पूंजी खोइ बनारसी, भए भिखारी भेख ॥ ३२८ उहां जौनपुरमैं सुनी, खरगसेन यह बात ॥ हाइ हाइ करि आइ घर, कियौ बहुत उतपात ।। ३२९ कलह करी निज नारिसौं, कही बात दुख रोइ ॥ हम तौ प्रथम कही हुती, सुत आवै घर खोइ ॥ ३३० ॥ कहा हमारा सब थया, भया भिखारी पूत । पूंजी खोई बेहया, गया बनजका मृत ॥ ३३१ ॥ भए निरास उसास भरि, करि घरमैं बकबाद । सुत बनारसीकी ब्रह, पटई खैरावाद ॥ ३३२ ॥ ऐसी बीती जौनपुर, इहां आगरेमांहि । घरकी बस्तु बनारसी, बेंचि बेंचि सब खांहिं ।। ३३३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184