Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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कही बनारसिसौं तिन बात । तू चल मेरे साथ रात ॥ तब अंतरधन मोती काढ़ि । मुद्रा तीस और द्वै बाढ़ि ॥ ४०० बेंचि खोंचिकै आनैं दाम । कीनौ तब बरातिको साम । चले बराति बनारसिदास । दुजा मित्र नरोत्तम पास ॥ ४०१ मुद्रा खरच भए सब तिहां । बरात फिरि आए इहां ॥ खैराबादी कपरा झारि । बेच्यौ घटे रुपइया च्यारि ॥ ४०२ मूल-ब्याज दै फारिक भए । तब सु नरोत्तमके घर गए ॥ भोजन करकै दोऊ यार । बैठे कियौ परस्पर प्यार ।। ४०३
दोहरा कहै नरोत्तमदास तब, रहौ हमारे गेह ।
भाईसौं क्या भिन्नता, कपॅटीसौं क्या नेह ॥ ४०४ तब बनारसी ऊतर भने । तेरे घरसौं मोहि न बने । कहै नरोत्तम मेरे भौन । तुमसौं बोले ऐसा कौन ॥४०५ तब हठकरि राखे घरमांहि । भाई कहै जुदाई नांहि ॥ काह दिवस नरोत्तमदास । ताराचंद मौठिए पास ॥ ४०६ बैठे तब उठि बोले साहु । तुम बनारसी पटने जाहु ॥ यह कहि रासि देइ तिस बार । टीका काढ़ि उतारे पार ॥४०७॥ आइ पार वृझे दिन भले । तीनि पुरुप गाड़ी चदि चले ॥ सेवक कोउ न लीनों गैल । तीनों सिरीमाल नर छैल ॥ ४०८
___ १ व दारा । २ क बैं बहुा कियौ तिनि प्यार। ३ उ बुसो बोले कौन । ४ ब संवक कु. लियो तिन गल ।
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