Book Title: Arddha Kathanak
Author(s): Banarasidas
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 182
________________ ५९ चौपई पहर राति जब पिछली रही । तब महेसुरी ऐसी कही || मेरो लहुरा भाई हरी । नांउ सु तौ व्याहा है बरी ॥ ५२७ ॥ हम आए थे इहां बरात । भली यादि आई यह बात । बानारसी कहै रे मूढ़ । ऐसी बात केरी क्यौं गृढ़ ॥ ५२८ ॥ दोहरा तब महेसुरी यौं कहै, भयौं भूली मोहि । अब मोकौं सुमिरन भई, तू निचित मन होहि ॥ ५२९ ॥ चौपाई तब बनारसी हरषित भयौ । कछु इक सोच रह्यौ कछु गयौ ॥ कबहू चितकी चिंता भौ । कबहू बात झूठसी लगै ॥ ५३० ॥ यौं चिंतवत भयौ परभात । आइ पियादे लागे घात ॥ सूली दै मजूरके सीस । कोतवाल भेजी उनईस ॥ ५३१ ॥ ते सराइ डारी आनि । प्रगट पियादे कहैं बखानि । तुम उनीस प्रानी ठग लोग । ए उनीस सूली तुम जोग ॥ ५३२॥ दोहरा घरी एक बीते बहुरि, कोतवाल दीवान । आए पुरजन साथ सब, लागे करन निदान ॥ ५३३ ॥ चौपई तब बनारसी बोलै बानि । बरीमांहि निकसी पहचानि ॥ तब दीवान कहै स्याबास । यह तो बात कही तुम रास ॥ ५३४ १ अ कही । २ ब भई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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